नई दिल्ली । अखिलेश यादव ने दिल्ली के राजनीतिक हलकों में एक शिगूफा छोड़ दिया है कि यदि राहुल गांधी, मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री और वे (राहुल) खुद उप प्रधानमंत्री बनते हैं तो 2019 में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (एसपी) का गठबंधन हो सकता है। यह अखिलेश की दिल की बात हो सकती है क्योंकि समाजवादियों को पता है कि 2017 में विधानसभा चुनाव में उनकी राह आसान नहीं है और उन्हें किसी न किसी का साथ जरूर चाहिए। हालांकि कांग्रेस ने फिलहाल यह फैसला किया है कि वह यूपी में अकेले चुनाव लड़ेगी। लेकिन बिहार में महागठबंधन की अपार सफलता के बाद इतना तो तय है कि यूपी में भी एक गठबंधन बनने की संभावना तलाशी जा रही है। शायद यही वजह है कि अखिलेश ने यह जान-बूझकर कहा है। भले ही उनका लहजा उतना संजीदा नहीं था मगर यह आज की राजनीति की सच्चाई है। यूपी में दो गठबंधन के आसार दिख रहे हैं या तो जो अखिलेश कह रहे हैं यानी कांग्रेस और एसपी का गठबंधन बने या फिर बीएसपी और कांग्रेस का।
इस बारे में जेडीयू नेता शरद यादव ने कहा कि देश में बीजेपी के खिलाफ बड़ा मोर्चा बनाने की कोशिश काफी दिनों से चल रहा है। इसमें जनता परिवार के सभी दलों के विलय की बात थी। मोर्चे ने मुलायम सिंह को अपना नेता भी चुना था। इसमें चौटाला और देवगौडा की पार्टी के अलावा लालू ,नीतीश और मुलायम को एक होना था। मगर यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया। बिहार में भी एसपी, एनसीपी के साथ ही लालू और नीतीश को साथ लड़ना था। मगर मुलायम सिंह के अलग होने से यह गठबंधन टूट गया। अब फिर अखिलेश यादव ने नए गठबंधन की उम्मीद जगा दी है मगर कांग्रेस के नेता अभी खुलकर कुछ नहीं कह रहे क्योंकि पार्टी ने आधिकारिक रूप से कोई निर्णय नहीं लिया है। कांग्रेस पार्टी ने ओर से प्रतिक्रिया में कहा गया कि बिहार के बाद अब असम और बंगाल में चुनाव होने हैं। असम में बीजेपी के खिलाफ फिर एक गठबंधन बनना है जिसमें कांग्रेस के साथ बदरूद्दीन अजमल और बोडो दलों को साथ आना होगा। असम में बीजेपी भी असम गण परिषद के साथ जाने की कोशिश करेगी। बंगाल में भी कांग्रेस और वामदल साथ आते हैं या नहीं यह भी देखना होगा। कुल मिलाकर यदि सभी गैर बीजेपी दलों को लगता है कि उन्हें साथ आना है तो इन दलों के नेताओं को अपने निजी स्वापर्थ को छोडना पडेगा जो कि इतना आसान नहीं है।
बिहार में पांच सीटें मिलने पर सपा और एनसीपी महागठबंधन से अलग हो गई थी।बिहार में वामदल भी महागठबंधन में नहीं लड़े थे। इन दलों के अलग-अलग लड़ने से महागठबंधन को करीब 12 सीटों का नुकसान हुआ था। यह भी तय है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी गठबंधन बिना कांग्रेस के नहीं बन सकता इसलिए उन्हें खासकर समाजवादियों को कांग्रेस विरोध की मानसिकता से उपर उठना होगा और यह तय करना पड़ेगा कि देश या राज्य हित में क्या जरूरी है।
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