नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि 2014 में समलैंगिक संबंधों पर दिए गए अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को 'पुनर्विचार' करना चाहिए। इस विषय में और बात करते हुए जेटली ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सहमति से बनाए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया था लेकिन जरूरी है कि न्यायालय अपने इस फैसले पर वर्तमान प्रासंगिकता के हिसाब से पुनर्विचार करे। कोर्ट के फैसले को 'रूढ़िवादी' नज़रिया बताते हुए एक समारोह में जेटली ने कहा कि जब लाखों लोग इसमें (समलैंगिक संबंधों में) शामिल हों तो आप इसे झुठला कैसे सकते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी माना कि 'भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 ने जो अभिव्यक्ति की आज़ादी दी है उसे देश की अदालतों ने हमेशा ही बनाए और बचाए रखा है। इस मामले में हम युरोपियन अदालतों से टक्कर ले सकते हैं।'
केंद्रीय वित्त मंत्री ने माना कि आज़ादी के बाद देश की न्याय व्यवस्था कमज़ोर पड़ गई थी क्योंकि कई सरकारों ने उसे दबाने की कोशिश की लेकिन ऐसे कई ऐतिहासिक फैसले हैं जिसे अदालत ने सरकार की ताकत के खिलाफ जाकर सुनाए हैं। वह पांच मुकदमे जिसने भारतीय प्रजांतत्र को एक मजबूत ढांचा दिया उनका ज़िक्र करते हुए जेटली ने केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया क्योंकि इस मामले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान का एक मूलभूत प्रारूप खींचा था। इसके साथ ही जेटली ने मेनका गांधी बनाम भारत सरकार मुकदमे का ज़िक्र किया जिसमें मेनका का पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया था और जो देश में 'मूलभूत अधिकारों की प्रमुखता' को दर्शाता है।
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