शिर्डी। देश को स्वच्छ रखने के लिये जरुरी है कि हम अपनी मानसिकता को स्वच्छ रखें। हम अपने शरीर की, अपने घर की सफाई रखना पसन्द करते है लेकिन आसपास की गलियों को गन्दा करने में बाज नहीं आते। जब तक देश का प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्य के प्रति सजग नहीं होगा तो हमारे देश के प्रधानमंत्री का सपना ‘स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत’ की कल्पना साकार होने में प्रश्न चिन्ह लगा रहेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वच्छता सभी को प्रिय लगती है, लेकिन नागरिक स्वयं स्वच्छता के लिये कुछ करना नहीं चाहता। भारत में सार्थक श्रम की बहुत कमी है। जहां भी श्रम से जी चुराने का अवसर मिले व्यक्ति उसका लाभ उठा लेता है। हम भारतवासियों की इसी कमजोरी के कारण हमारा भारत अस्वच्छ बना रहता है। उपरोक्त विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने गांधी जयन्ती ‘स्वच्छ भारत’ विषय पर प्रवचन करते हुए षिर्डी जैन स्थानक में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर प्रभु ने प्रमाद अर्थात आलस्य को पाप कहा है। इसके बावजूद हम अपनें जीवन में इसे ही अधिक गले लगाकर चलते हैं। भगवान महावीर प्रभु ने प्रति लेखन का सिद्धान्त दिया इसका अर्थ है वस्तु को पूर्णतया देखना, उसमें कहीं विकृति है तो उसे हटा देना। स्वच्छता जहां होती है वहां हिंसा भी कम होती है। गंदगी में ही सुक्ष्म जीव पैदा होते हैं और कभी कभी तो बड़े-बड़े जन्तु भी गंदगी में पैदा जाते है फिर उनकी हिंसा सफाई करने वाला करता ही है। गंदगी अधर्म भी है ऐसा महावीर प्रभु का सिद्धान्त है। डा.पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि पूरी दुनिया में पदार्थों के आविष्कार हुए हैं। मेरा भारत पदार्थों का आविष्कार नहीं करता, यहां तो परमात्मा की खोज की जाती है। धन-दौलत तो सभी खोजते हैं, भारत में तो भगवान को खोजा जाता है। जीवन में सुबह से शाम तक समस्या की सूची बनाओ तो उसका अंत नहीं होता। खाना बनाओ तो समस्या, बनाओ तो खाना अच्छा बना या नहीं, यह समस्या। समस्या को सिर पर ज्यादा मत चढ़ाओ। वे लोग भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें तकिए पर सिर रखते ही नींद आती है। तुम चिंता को छोड़ो, क्योंकि अध्यात्म में रुचि तभी आएगी, जब चिंता में नहीं, चिंतन में जिओगे।
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