ग्रेटर नोएडा। बिसाहड़ा कांड में अखलाक का ही खून नहीं बहा, रिश्तों का खून भी बह गया। पुलिस ने विशाल को मुख्य अभियुक्त बनाया है। विशाल के पिता संजय राणा और अखलाख जिगरी दोस्त थे। पुलिस की कहानी से उलट संजय राणा का कहना है कि सोमवार की रात जब भीड़ अखलाक को पीट रही थी उन्हें बचाने के लिए हर संभव कोशिश की। पुलिस को इत्तला दी। इलाज के लिए मांग-मांगकर पैसे दिए। संजय राणा बताते हैं कि 'रात को गांव में हंगामा हो रहा था। भीड़ अखलाख के घर में घुस गई। उसे और उसके बेटे को पीट रही थी। मैंने अपने मोबाइल से रात 10:26 बजे जारचा के एसओ सुबोध कुमार को फोन किया। उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की। मैंने तुरंत पुलिस नियंत्रण कक्ष को 100 नंबर पर फोन किया। पूरी जानकारी दी। तभी 10:28 बजे सुबोध कुमार का वापस फोन आया। उन्हें कहा कि फोर्स लेकर गांव में आओ। बवाल हो गया है, लेकिन पुलिस करीब 45 मिनट बाद गांव में पहुंची। तब तक भीड़ ने अखलाक को खींचकर सड़क पर फेंक दिया। भीड़ भाग चुकी थी। एक सिपाही और मैंने रात करीब 11:15 बजे अखलाख को जीप में रखा और अस्पताल भिजवाया।'
अखलाक को अस्पताल भेजने के बाद पुलिस उसके घर पहुंची। अखलाख की मां, बेटी और पत्नी रो रही थीं। अखलाक की पत्नी ने दानिश के बारे में बताया। वह घर में पड़ा था। अखलाक से करीब आधा घंटे बाद दानिश का अस्पताल भिजवाया। पुलिस वालों के पास अखलाख और उसके बेटे का इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं थे। संजय बताते हैं कि उन्होंने अपने घर में रखे 5,000 रुपये सिपाही को दिए। फिर दौड़कर अपने चाचा संजीव राणा के पास गए। उनसे 10,000 रुपये लेकर पुलिस वालों को दिए थे। संजय राणा का कहना है कि 'अखलाक मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। मैंने उसके बारे में क्या सोचा और उसे बचाने के लिए क्या किया, यह भगवान जानता है। हमें इस फसाद में क्यों फंसाया गया, यह मुझे भी मालूम नहीं है।'
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