गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)। दुनिया को धर्म और अध्यात्म की रोशनी दिखाने वाला गीता प्रेस संकट में है। कारण है वेतन वृद्धि और सहायक प्रबंधक के साथ अभद्रता करने वाले 17 कर्मचारियों की वापसी की मांग को लेकर जारी हड़ताल, जिसका अंत नहीं दिख रहा और जिसके कारण आठ अगस्त से छपाई कार्य बंद है। गीता प्रेस का जो परिसर सद्भाव और सहकार के लिए जाना जाता था, आज वहां अशांति है। धर्म और अध्यात्म में रुचि रखने वाले चिंतित हैं। बुद्धिजीवी सोशल मीडिया पर गीता प्रेस बचाने का अभियान चला रहा है, पाठक दुखी हैं पर धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन का रिकार्ड बनाने वाला गीता प्रेस बर्बादी की ओर है। सन् 1923 में स्थापित गीता प्रेस से अब तक 55 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 11 भाषाओं में गीता प्रकाशित होती है। प्रेस के 92 साल के इतिहास में कर्मचारी आंदोलन की यह पहली घटना है। ऐसे में लोगों को लग रहा है कि इस हिंदू साहित्यक की सबसे बड़ी प्रकाशक कंपनी का अस्तित्व ही कहीं गुम ना हो जाए।
गीता प्रेस में कुल 525 कर्मचारी हैं, जिनमें 200 स्थायी हैं जबकि 325 ठेके पर काम करते हैं। समझौते के तहत प्रबंधन द्वारा पिछली जुलाई से तीन स्तर के कर्मचारियों-अकुशल, अद्र्धकुशल व कुशल को क्रमश: 600, 750 और 900 रुपये की वेतन वृद्धि दी जानी थी। प्रबंधन ने इस शर्त पर वेतन वृद्धि की हामी भरी कि कर्मचारी पिछले सभी विवाद समाप्त कर दें और पांच वर्ष तक कोई नई मांग न रखें। यह शर्त रखे जाने के बाद कर्मचारियों ने सात अगस्त को सहायक प्रबंधक मेघ सिंह चौहान को धक्के देकर गेट से बाहर कर दिया। दूसरे दिन प्रबंधन ने १२ स्थायी कर्मचारियों को निलंबित कर दिया और पांच संविदा कर्मचारियों को निकाल दिया। तब से कर्मचारी हड़ताल पर हैं। गीता प्रेस कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रमन श्रीवास्तव के अनुसार गीता प्रेस हमारी रोजी-रोटी है। हम क्यों चाहेंगे गीता प्रेस बंद हो जाए। दोष प्रबंध तंत्र का है। वेतनवृद्धि एवं 12 कर्मचारियों के अलावा अस्थाई कहकर निकाले गए पांच कर्मचारियों को वापस लें, हम काम करने को तैयार हैं। इधर प्रेस के प्रबंधन के अनुसार गीता प्रेस न तो बंद होने की स्थिति में है और न ही इसे बंद होने दिया जाएगा। प्रेस बंद नहीं हुआ है, केवल कर्मचारियों की हड़ताल के कारण काम रुका है। कर्मचारियों की उद्दंडता के कारण कुछ कर्मचारियों को निलंबित किए जाने से कर्मचारी हड़ताल पर हैं। कर्मचारियों की हड़ताल का भी आशय यह नहीं है कि गीता प्रेस बंद कर दिया जाए। गीताप्रेस में किसी तरह की कोई आर्थिक समस्या नहीं है। प्रबंध तंत्र यह भी बताना चाहता है कि गीता प्रेस किसी तरह का कोई चंदा नहीं लेता है।
फेसबुक और ट्विटर पर 'सेव गीता प्रेस' हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। गीता प्रेस से जुड़ी आस्था के चलते बड़ी संख्या में लोगों ने आर्थिक सहयोग की पेशकश की है। गीता प्रेस की किताबें खरीदकर उन्हें उपहार स्वरूप देने का आग्रह बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। एक आइएएस अधिकारी संजय दीक्षित ने ट्विटर पर मुहिम छेड़ रखी है। भारत में रह रहीं जर्मन मूल की हिंदू धर्म साधिका मारिया विर्थ के अनुसार गीता प्रेस के बगैर भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए उसे बचाया जाना चाहिए। (साभार inext)
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