नई दिल्ली। मैगी अनसेफ है....यह पूरी तरह साबित होने से पहले ही पूरे देश में इसके इस्तेमाल पर हाहाकार मचा हुआ है। ट्विटर से लेकर फेसबुक और घर-ऑफिसों में मैगी बहस की वजह बन चुकी है। कभी जो मैगी हमारे नाश्ते का सबसे बढ़िया ऑप्शन हुआ करती है, आज की तारीख में किस हाल से गुजर रही है, इसे समझने की जरूरत है।
नियम ये है कि फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स रूल्स 2011 के मुताबिक स्वाद में इजाफा करने वाले एमएसजी (मोनोसोडियम ग्लूटमेट) 12 महीने के बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए। 50 खाने की चीजों में एमएसजी के इस्तेमाल पर मनाही है। नवजात शिशुओं के मिल्क प्रॉडक्ट्स में 0.2 पीपीपी (पार्ट्स प्रति मिलियन) से ज्यादा एमएसजी की इजाजत नहीं है। खाद्य पदार्थों (चाय, बेकिंग पाउडर, डीहाइड्रेटेड प्याज, ड्राइड हर्ब्स आदि) में एमएसजी की मात्रा अधिकतम 10 पीपीएम हो सकती है। क्योंकि नूडल्स फूड्स नॉट स्पेसिफाइड कैटिगरी में आते हैं, इसलिए इसमें 2.5 पीपीएम लेड की इजाजत है।
दरअसल, एमएसजी (मोनोसोडियम ग्लूटमेट) ऐसा तत्व है जो हमारे नर्वस सिस्टम को उत्तेजित कर देता है। इससे खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगने लगता है। इंडियन-चाइनीज फूड में इसका जमकर इस्तेमाल किया जाता है। खाद्य पदार्थों की जांच करने वाली अमेरिकी एजेंसी के मुताबिक यह सेफ माना जाता है। यह नमक, काली मिर्च, सिरका और बेकिंग पाउडर में भी पाया जाता है। इताना ही नहीं, टमाटर, मशरूम और चीज में भी ग्लूटमेट होता है। मोनो सोडियम और ग्लूटमेट के मिश्रण से ही एमएसजी बनता है। वह भी इसलिए क्योंकि ग्लूटमेट में सोडियम नहीं होता। सोडियम मिलने से इसे नमक जैसा रूप मिल जाता है, जो टेस्टमेकर का काम करता है।
हालांकि मैगी पर छिड़े बवाल के मसले पर नेस्ले का कहना है कि हम भारत में बेची जाने वाली मैगी में एमएसजी डालते ही नहीं हैं और इसका जिक्र प्रॉडक्ट पर भी है। हालांकि, हम हाइड्रोलाइज्ड ग्राउंडनट प्रोटीन, प्याज पाउडर और गेंहूं के आटे का इस्तेमाल करते हैं। इन सभी में ग्लेटमेट होता है। हमारा मानना है कि जांचकर्ताओं ने टेस्ट में ग्लूटमेट की मौजूदगी पाई होगी, लेकिन यह कई खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक रूप से खुद ही होता है।
यूपी में मैगी इंस्टैंट नूडल्स के नमूनों की जांच के दौरान मोनो सोडियम ग्लूटामेट और सीसे की मात्रा तय सीमा से अधिक मिलने के बाद खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) हर स्तर पर सक्रिय दिखाई दे रहा है। देश भर से सैंपल एकत्र किए जा रहे हैं और राज्यवार जांच की खबरें भी आ रही हैं। दिल्ली में हुई मैगी की जांच में 13 में से 10 सैंपल में तय मात्रा से अधिक लेड पाया गया। दिल्ली सरकार अब मैगी बनाने वाली स्विट्जरलैंड की कंपनी नेस्ले के खिलाफ कार्रवाई का मन बना चुकी है। बिग बाजार ने तो मैगी को देश भर में फैले अपने स्टोर्स में रखने से भी मना कर दिया है। केरल में भी सरकारी स्टोरों से मैगी हटाने के निर्देश हैं। यह कवायद पर्याप्त नहीं है। देश के उपभोक्ताओं के साथ इतने बडे स्तर पर धोखाधड़ी का यह अकेला मामला नहीं हो सकता। जरूरी है कि संबद्ध विभाग नजर में आए उत्पाद के अलावा भी तमाम इंस्टैंट फूड उत्पादों की सख्ती से जांच करें और उन पर लगातार कड़ी नजर रखें। समय-समय पर उनकी जांच का प्रावधान सुनिश्चित हो और आवश्यक जिंसों व खाद्य पदार्थों के मामले में हो रही चालबाजी पर सख्ती हो।
बाजार में पैकेज्ड फूड को अधिक से अधिक खपाने के लिए इन प्रोडक्ट्स की कंपनियां जिस तरह का आकर्षक जाल बिछाती हैं, उसे भी तरीके से समझने की जरूरत है। फिल्मी चेहरों के विज्ञापनी मायाजाल के जरिए स्तरहीन, बल्कि खतरनाक चीजों को भी बाजार में बिकवा देने की साजिश से नागरिकों को सचेत होना होगा। उन्हें समझना होगा कि हर चमकदार चीज सोना नहीं होती। बहरहाल, इस प्रकरण के बाद केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने कहा है कि खाद्य पदार्थों की बिक्री में धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यहां तक कि उन्हें आजीवन कारावास भी भुगतना पड़ सकता है। लेकिन उनका यह बयान बाजार के बड़े खिलाड़ियों को डराने के लिए शायद ही काफी हो। सरकार को बिल्कुल छोटे स्तर पर गड़बड़ियां पकड़ने की व्यवस्था और इसके लिए जरूरी नियम बनाने होंगे। दस-बीस साल में एक नहीं, हर रोज दस-बीस मामले पकड़े जाने पर ही नामी-गिरामी घपलेबाजों के होश ठिकाने आएंगे। (साभार)
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