नई दिल्ली। बिहार चुनावों के संदर्भ में कहा जा रहा है कि राज्य में बीजेपी के पास जनता के बीच उतारने के लिए नेता नहीं है। कई बार तो लगता है कि बीजेपी की मुश्किल ही यही है कि उसके पास कई दावेदार हैं। नीतीश लालू का पक्ष हो या बीजेपी-पासवान-कुशवाहा का हो, दोनों की राजनीति जाति के समीकरणों के आधार पर ही घूम रही है। सब अपने-अपने वोट की व्याख्या जाति के हिसाब से कर रहे हैं, जिसे चुनाव के दिनों में पुकारा जाएगा विकास के नाम से, लेकिन आज एक प्रयास करते हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास चुनने का विकल्प हो तो उनकी सूची में किसके नाम हो सकते हैं। वैसे कोई सूची बनी नहीं है मैं अपनी तरफ़ से ये सूची बना रहा हूं।
61 साल के रविशंकर प्रसाद प्रशासनिक लिहाज़ से मुख्यमंत्री पद के लिए मुझे सबसे योग्य नज़र आते हैं। राज्यसभा, केंद्र में मंत्री और टीवी चैनलों के स्टुडियो ने रविशंकर प्रसाद को ल्युटियन दिल्ली का नेता तो बना दिया है, मगर हाल के चुनावों में रविशंकर प्रसाद को चुनावी राजनीति में मज़ा लेते भी देखा है। दिल्ली की सभाओं में वे आसानी से भोजपुरी बोल लेते हैं और लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार में घूम-घूम कर सभाएं करते रहे हैं। उन्होंने कभी बिहार की राजनीति में जाने का संकेत तो दिया नहीं है, मगर उनके भीतर ये इच्छा पैदा तो की जा सकती है। प्रसाद का जातिगत आधार भले न हो मगर केंद्रीय मंत्री के तौर पर कभी योग्यता पर सवाल भी नहीं उठा है।
केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह दूसरे उम्मीदवार हो सकते हैं। भले ही राधा मोहन सिंह साठ साल से रेंग रही कृषि अर्थव्यवस्था में जान नहीं डाल पाए हों या उनके किसी बड़े कदम की सराहना न हो रही हो मगर हाल के भाषणों और मीडिया से संवाद के दौरान उनके भीतर संभावनाएं देखी हैं। मंत्रालय का प्रदर्शन बेहतर करने के लिए एक साल का समय भी पर्याप्त नहीं है। राधा मोहन सिंह जातिगत समीकरणों के हिसाब से फिट भी बैठेंगे। राधामोहन सिंह 66 साल के हैं। लिहाज़ा उम्र अभी उनके साथ है। राधामोहन सिंह बिहार बीजेपी के पुराने नेताओं में से हैं। राधामोहन सिंह फिर से बिहार की राजनीति में भेजे जा सकते हैं। उनका पुराना अनुभव बेहतर तरीके से काम आ सकता है।
राजीव प्रताप रूडी को वाजपेयी और मोदी मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभाग संभालने का मौका मिला है। इस वक्त प्रधानमंत्री के एक बड़े प्रोजेक्ट का दायित्व संभाल रहे हैं। स्किल इंडिया कितना कारगर हो सका है इसकी सही तस्वीर तो एक दो सालों बाद ही दिखेगी लेकिन रूडी 53 साल के होने के कारण युवा मुख्यमंत्री के रूप में पेश किये जा सकते हैं। रूडी की राजनीति शुरूआत भी छात्र जीवन से हुई है मगर अपनी छवि को गंभीरता से पेश नहीं कर सके हैं। रूडी में संभावना है कि वे एक रणनीतिक नेता के तौर पर पेश कर सकते हैं। रूडी के साथ एक बड़ी खूबी यह भी है कि जातिगत समीकरण में भी फिट बैठ जाते हैं और ग़ैर राजनीति छवि भी लेकर चलते हैं। रूडी जाति पर हो रहे इस चुनाव के नतीजे के बाद ऐसा चेहरा हो सकते हैं, जो चुनाव बाद की जातिगत सीमाओं से ऊपर जाकर काम करने की ज़िम्मेदारी संभाल सकते हैं।
शाहनवाज़ हुसैन की पहले चर्चा चली थी कि बीजेपी बिहार में नीतीश और लालू को रोकने के लिए शाहनवाज़ को मैदान में उतार सकती है। एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारकर बीजेपी बिहार से लेकर दिल्ली तक में सेकुलरवादी दलों को कड़ा जवाब दे सकती है। बिहार में कभी कोई बड़ा मुस्लिम नेता नहीं हुआ। लालू प्रसाद यादव भी कभी अब्दुल बारी सिद्दीकी को ऊंची हैसियत नहीं दे सके। वे राजद में टू थ्री फोर बनकर ही खुश रहे। अब्दुल बारी सिद्दीकी से भी एक चूक हुई। उन्होंने कभी अपने आपको बड़े नेता के रूप में पेश नहीं किया। लालू यादव की छाया से निकल नहीं पाए। यह बीजेपी पर निर्भर करता है कि वह इस तरह के मास्टर स्ट्रोक में यकीन करती है या नहीं। शाहनवाज़ हुसैन में ये ख़ूबी है। वे किसी की छाया में नजर नहीं आते हैं। शाहनवाज़ हुसैन ने दिल्ली में ईद मिलन की पार्टियों से अपनी एक अलग हैसियत की दावेदारी तो की है मगर भागलपुर से चुनाव हारने के बाद वे अपनी नई ज़मीन नहीं बना पा रहे हैं। अच्छे प्रवक्ता होने के साथ-साथ शाहनवाज़ हुसैन के पास भी संगठन और प्रशासनिक अनुभव तो है मगर हो सकता है कि बीजेपी इतना बड़ा कदम न उठाये और कई नेताओं से उम्र में कम शाहनवाज़ को अभी और इंतज़ार करना पड़े।
सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव के बारे में सबको पता है। बिहार में संभावना के तौर पर देखे भी जाते रहे हैं और नकारे भी जाते रहे हैं। सुशील मोदी को बीजेपी चुन लेती है तो उनके कॉपीराइटरों के लिए काफी आसान होगा। यहां भी मोदी वहां भी मोदी टाइप के स्लोगन लिखने में। प्रशासनिक अनुभव के लिहाज़ से देखें तो जीएसटी के बनने की प्रक्रिया में सुशील मोदी की ठीक-ठाक भूमिका रही थी। मुझे नहीं लगता है कि सुशील मोदी को जातिगत समीकरणों में फिट किया जा सकता है। इसके बावजूद वे बिहार बीजेपी के बड़े नेता तो हैं ही। फिलहाल इन नेताओं के बारे में अच्छी अच्छी बातें ही कहीं हैं। बिहार में बीजेपी का नेता कौन होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि नेता का चुनाव कब होगा। चुनाव के बाद या पहले। चुनाव के बाद होगा तो बीजेपी के सामने नीतीश के कद के हिसाब से चुनने की कोई समस्या नहीं रहेगी।
रामविलास पासवान ने पिछले दिनों कहा था कि एक बार जो उस पद पर बैठ जाएगा, लोग जान जाएंगे और वो नेता बन जाएगा। उनके इस बयान को पढ़कर लगा कि राजनीतिक दलों के लिए नेता बनाना कितना आसान खेल है। जनता ही बेकार में नेता ढूंढती रहती है। अगर पासवान के हिसाब से किसी को उस पद पर बिठा ही देना है तो उसका नाम चुनाव के पहले ही बता देना चाहिए। बीजेपी चुनाव के पहले नेता का नाम नहीं बताएगी इस बात के बाद भी कि यह चुनाव उसके लिए जीने मरने का चुनाव है। बीजेपी के स्वाभाविक सहयोगी में ढल चुके रामविलास पासवान ने भी कहा कि बिहार चुनाव जीवन-मरण का सवाल है। इतने बड़े चुनाव में बीजेपी किसी नेता का नाम बताने का दांव नहीं चलेगी यह भी कम विचित्र नहीं है। बीजेपी के पास नेता की कमी नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि चुनाव से पहले नेता का नाम बताने का साहस है या नहीं। नेता का नाम सिर्फ नीतीश कुमार की वजह से ही नहीं बता रही होगी। ऐसा भी हो सकता है कि एक का बताया तो दूसरे संभावित नेताओं की जातियों को ठेस पहुंच जाए। (साभार)
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