श्रीनगर [नवीन नवाज]। वादी में 2010 के हिंसक प्रदर्शनों के सूत्रधार रहे मसर्रत आलम की रिहाई किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह अलगाववादी खेमे में या कश्मीरियों में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने और कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के साथ बातचीत का माहौल तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद का पैंतरा है।
वर्ष 1971 में श्रीनगर शहर के जैनदार मुहल्ले में पैदा हुए आलम की रिहाई पूरी तरह सियासी है। इसकी पुष्टि राज्य पुलिस महानिदेशक के उस बयान से होती है, जिसमें वह कहते हैं कि गत चार वर्षो से जेल में बंद हुर्रियत नेता की रिहाई का आदेश राज्य सरकार से आया है। संबंधित सूत्रों ने बताया कि आलम की रिहाई से मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने एक तीर से दो शिकार करने का प्रयास किया है। पहला भाजपा के साथ गठजोड़ के बाद कश्मीर में आलोचना झेल रहे मुफ्ती मुहम्मद सईद अपने लिए कश्मीरियों और अलगाववादियों के बीच सहानुभूति पैदा करते हुए यह कह सकें कि मैने अपने एजेंडे पर किसी तरह का समझौता नहीं किया है।
आलम को गिलानी और जेल में बंद कट्टरपंथी नेता डॉ. कासिम फख्तू का करीबी माना जाता है। इसके अलावा आलम ही वह युवा कट्टरपंथी नेता है जो सलाहुदीन को भी चुनौती दे सकता है। उसने ऐसा वर्ष 2010 के हिंसक प्रदर्शनों में किया भी है। कश्मीर के मिशनरी स्कूल टिंडेल बिस्को में शुरुआती पढ़ाई करने और उसके बाद एसपी कॉलेज से स्नातक करने वाले मसर्रत आलम को कट्टरपंथी गिलानी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाता रहा है। वर्ष 1990 से 1997 तक लगातार जेल में रहे मसर्रत आलम के रिहाई से दो दिन पहले जम्मू में पीडीपी की युवा इकाई के नेता वहीद उर रहमान पारा की गिलानी के बड़े दामाद अल्ताफ शाह उर्फ फंतोश और वरिष्ठ हुर्रियत नेता मुहम्मद शफी रेशी की मुलाकात भी हुई थी।
कहा जा रहा है कि इसी बैठक में गिलानी की तरफ से कुछ वरिष्ठ अलगाववादियों की रिहाई के लिए कहा गया है और उनमें मसर्रत का नाम सबसे ऊपर था। इसके अलावा मसर्रत की रिहाई से हुर्रियत के उदारवादी खेमे पर भी नई दिल्ली से बातचीत की कवायद जल्द से जल्द शुरू करने का दबाव बनेगा।
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