लखनऊ। सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे“ वाली कहावत बसपा नेताओं पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। बसपा के विधान परिषद में नेता को इस बात की बड़ी चिन्ता हो रही है कि उनकी नेता ने जो पार्क, स्मारक बनवाए थे वे बदहाल होते जा रहे हैं। उन्हें उनके ठीक से रखरखाव न होने की भी शिकायत है। ये पार्क, स्मारक बने एक दशक भी पूरा नहीं हुआ है और जब इनके निर्माण में ही शिकायते मिलने लगी हैं तो कोई भी पूछ सकता है कि बसपाराज में इनके निर्माण में घटिया सामग्री क्येां लगी थी।
बसपा की पूर्व मुख्यमंत्री ने अरबों की लागत अपनी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर लगाकर पार्क और स्मारक बनवाए थे। उनमें अपनी प्रतिमाएं भी लगवाई थी। इन पार्को, स्मारकों के निर्माण के लिए बड़े-बड़े ठेके दिए गए थे। लेकिन उस जमाने में जो दस्तूर था उसके हिसाब से सभी कार्यो में मोटे कमीशन की वसूली भी देनी होती थी। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री की प्रतिमाओं के निर्माण में भी मोटा कमीशन वसूल लिया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री के समय पंचमतल का काम केवल आय के नए-नए स्रोत खोजना ही रह गया था। जब ठेकेदारों से बढ़-बढ़कर कमीशन वसूल लिया गया तो जो निर्माण कार्य, जिन लोगों ने किया, उन्होने निर्माण कार्य में घटिया सामग्री लगाकर काम चलाया। तत्कालीन अभियन्ताओं और अधिकारियों ने बहती गंगा में अपने भी हाथ धोये और घटिया निर्माण को भी ओके कर दिया। अब जब स्मारक चटक रहे हें और मूर्तियां बदरंग हो रही हैं तो शिकायत क्यों?
बसपा नेता का समाजवादी सरकार के समय पार्को, स्मारकों के संबंध में शिकायतें करना कतई उचित नहीं है। उनके समय के घटिया निर्माण के लक्षण तो अब प्रकट होगें ही। समाजवादी सरकार ने तो पूर्व मुख्यमंत्री की टूटी प्रतिमा 24 घंटे में पुन स्थापित कर अपनी सदाशयता और राजनीतिक सौहार्द का प्रशंसनीय प्रदर्शन किया था। जनता की गाढ़ी कमाई लुटाकर बसपाराज में बनाए गए पार्को, स्मारकों के निर्माण में हुई धांधली की वजह से बसपा के ही कई नेता/मंत्री जेल की हवा खा रहे हैं और लोकायुक्त तथा सतर्कता की जॉच में फंसे हुए है। बसपाराज में इन पार्को, स्मारकों के रखरखाव के लिए एक बड़ी सुरक्षा फौज भी खड़ी की गई थी जिनके वेतन भत्ते पर बड़ी रकम खर्च हो रही है। अब जो गड़बड़ियां हो रही है उसके लिए बसपा के अपने लोग और उनके कालेकारनामे ही दोशी हैं। समाजवादी सरकार ने तो इन पार्को, स्मारको को सुरक्षित रखकर दर्शाया है कि वह बदले की भावना से निर्णय नहीं लेती है। वह बसपा की तरह सरकारी खजाना लूटती नहीं, जनता का पैसा जनहित में खर्च करती है। बसपा नेताओं को इसलिए समाजवादी सरकार से शिकायत करने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होने जो बोया था, वही तो कांटेगें।
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