लखनऊ। सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि सीएम अखिलेश यादव ने वर्ष 2014-15 के लिए 2,74,704.59 करोड़ का बजट पेश कर विकास की नई संभावनाओं के द्वार खोला है। गैर समाजवादी सरकारों ने प्रदेश के बुनियादी ढॉचे को मजबूत बनाने में रूचि नहीं ली, इससे वह विकास की दौड़ में पिछड़ता गया। मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जनहित की जो योजनाएं शुरू की बसपा राज के पॉच सलों में उन्हें ध्वस्त कर मात्र पार्को, स्मारकों व तत्कालीन सीएम मायावती की बड़ी-बड़ी मूर्तियों के निर्माण में सरकारी खजाना लुटा दिया गया। जब से समाजवादी सरकार बनी है तब से उत्तर प्रदेश के समग्र विकास की रूपरेखा पर श्री अखिलेश यादव का विशेष ध्यान गया है। एक ओर जहॉ उन्होंने कृषि और गॉव, उद्योग और शहर के विकास पर बराबर जोर दिया है वहीं जनोन्मुखी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में किसी भी तरह की लापरवाही बरतने के प्रति भी सख्त रूख अपनाया है। दिल्ली में आयोजित इन्वेस्टर कानक्लेव में निवेश को लेकर सरकार और उद्योगपतियों के बीच 55,000 करोड़ के सहमति पत्र हस्ताक्षरित हुए हैं। प्रदेश में पूंजी निवेश से जहॉ आर्थिक हालात में सुधार आएगा वहीं कानून व्यवस्था को लेकर चलाए जा रहे भ्रामक दुष्प्रचार पर भी पूरी तरह से रोक लगेगी। मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को अवस्थापना सुविधाओं के साथ 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने का भी आश्वासन दिया है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की दूरदर्शिता और नई सोच के चलते प्रदेश में काम का नया वातावरण बना है और सरकारी तंत्र भी इस नई कार्य संस्कृति का अंग बन रहा है। सिर्फ योजनाएं ही नहीं उनके संचालन पर पैनी नजर रखने में भी वे तत्परता बरत रहे हैं। वे विकास कार्यो को जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना देखना चाहते हैं। उन्होंने प्रशासनतंत्र को भी चुस्त-दुरूस्त करने का काम किया है। मुख्यमंत्री जी ने मुख्य सचिव से लेकर जिले के विभिन्न स्तरों के अधिकारियों तक के कार्यों की समीक्षा कर उचित कार्यवाही की है। मुलायम सिंह यादव बराबर पार्टी कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को सचेत करते रहे हैं कि उन्हें सत्ता में विनम्रता और जनता के दुःख दर्द में शरीक होने की आदत डालनी चाहिए। प्रशासन और संगठन की छवि का जनता पर गहरा असर होता है। श्री अखिलेश यादव राजनीति से इतर सबको साथ लेकर चलने की राजनीति करने में विश्वास रखते हैं और प्रदेश के विकास में विपक्षी दलों के सहयोग पर भी बल देते हैं। लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के बराबर विपक्ष की भी मान्यता होती है और उससे रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है।
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