नई दिल्ली। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में कितना फर्क है, इसका पता लोकसभा में प्रधानमंत्री के पहले भाषण से चलता है। अब वह अपनी कट्टर छवि को बदलने में लगे हैं। अपने चुनाव प्रचार के भाषणों से अलग अब वह सबको साथ लेने की बात पर बार-बार जोर देते हैं। उन्होंने बदायूं रेप का जिक्र किया तो साथ ही पुणे में मोहसिन की हत्या पर भी अफसोस जाहिर किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें कांग्रेस के भी सहयोग की जरूरत होगी। उन्होंने ऐसी कई बातें कहीं, जिनका सुर कांग्रेसी नेताओं के बयानों से मिलता है और जिसका वह और उनकी पार्टी विरोध करते रहे हैं। मसलन मुसलमानों के हक के लिए बनाई गईं नीतियां अब उन्हें तुष्टिकरण नहीं लगतीं।
बुधवार को लोकसभा में नरेंद्र मोदी ने कहा, 'जिन मुसलमान भाइयों को मैं अपने बचपन से देख रहा हूं, उनकी तीसरी पीढ़ी भी साइकल ठीक करने का काम करती है। यह दुर्भाग्य क्यों जारी है? हमें उनकी जिंदगियों में बदलाव लाने के लिए ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें ऐसे कार्यक्रम शुरू करने होंगे। मैं इन कार्यक्रमों को तुष्टिकरण की धुरी के अंदर नहीं मानता। मैं इन्हें उन लोगों की जिंदगियों में बदलाव लाने का माध्यम मानता हूं। अगर किसी व्यक्ति का एक अंग बीमार है तो उसे स्वस्थ नहीं कहा जा सकता। एक व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए उसके शरीर के सारे अंगों को फिट रखना होगा। इसी तरह समाज के हर तबके को सशक्त करना होगा।' यह बयान नरेंद्र मोदी के विचारों में बहुत बड़े बदलाव का संकेत है। अपने प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा कि उनके लिए देश पहले है और वह किसी धर्म को अलग करके नहीं देखते। प्रचार के दौरान एक टीवी इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'देश के संसाधनों पर पहला हक गरीबों का है।' अब नरेंद्र मोदी मानते हैं कि भारत के मुसलमान पिछड़े हैं और उनके विकास के लिए विशेष योजनाएं बनाने की जरूरत है।
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