देहरादून (अनूप वाजपेयी)। लोकसभा चुनावों के नतीजों से उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन की आस लगाए सतपाल महाराज को फिलहाल हरीश रावत की किलेबंदी को तोड़ना होगा। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिस राजनीतिक चतुराई से सतपाल महाराज के समर्थकों को महत्व दिया है। उससे अमृता रावत पार्टी में अलग-थलग पड़ गई हैं। कभी साये की तरह खड़े रहने वाले समर्थक विधायक इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे हैं। हालांकि यह तय है कि अभी तक सरकार से छेड़छाड़ ना करने की बात कहने वाले सतपाल महाराज इसके बाद चुप नहीं बैठेंगे। महाराज समर्थक राजेन्द्र सिंह भंडारी की ओर से कोई बयान नहीं आया है लेकिन कभी कैबिनेट मंत्री रहे भंडारी को मंत्री पद ना देकर सभा सचिव बना देना भविष्य में नाराजगी का कारण बन सकता था।
मुख्यमंत्री धनै की जगह राजेन्द्र भंडारी को मंत्री बनाते तो शायद इसका बेहतर राजनीतिक फायदा मिलता और महाराज खेमे को सीधी चुनौती मिलती। दूसरे समर्थक अनुसूया प्रसाद मैखुरी को गैरसैंण विकास परिषद की जिम्मेदारी देकर गैर खेमे को महत्व जरूर दिया है लेकिन मैखुरी की निष्ठाएं कब तक के लिए हैं यह देखना होगा। हरीश रावत भले ही अमृता को हटाकर धनै को मंत्री बनाने का अंकगणित बेहतर मान रहे हों लेकिन हरीश रावत की कांग्रेस सरकार में 11 मंत्रियों में 5 गैर कांग्रेसी हो गए हैं। इसकी नाराजगी भी कांग्रेस के वरिष्ठ विधायकों की ओर से सुनाई देने लगी है। लंबे समय से दो से तीन बार के विधायक मंत्री बनने की आस लगाए हैं। एक वरिष्ठ विधायक का कहना है कि प्रदेश सरकार कांग्रेस की कहां है इसे तो गैर कांग्रेसी चला रहे हैं। हरीश रावत ने जिस रणनीति से काम किया है उसमें सरकार चला रहे सभी सात गैर कांग्रेसी विधायकों के साथ अपने सभी विधायकों को पद देकर मजबूत किलेबंदी की है। चुनाव नतीजों के बाद हरक सिंह रावत की नाराजगी के साथ भाजपा नेताओं की बयानबाजियों ने भी अमृता रावत को हटवाने में भूमिका निभाई है। महाराज को भाजपा में उनके कद के हिसाब से महत्व मिल रहा है लेकिन उनके साथ कांग्रेस छोड़ने वाले विधायकों को क्या मिलेगा शायद इसी सवाल ने उनके समर्थकों को रोककर रखा है। भाजपा की बात करें तो उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन तो चाहती है लेकिन तोड़फोड़ कर सरकार कतई नहीं बनाना चाहती है। हां, भाजपा चाहती है कि कांग्रेस सरकार आपसी खींचतान में गिर जाए और नए सिरे से चुनाव हो जाएं जिससे उसे बड़ा फायदा हो सकता है। फिर महाराज के समर्थक विधायकों को यह भी डर है कि भाजपा में जाने पर उन्हें टिकट मिलेगा कि नहीं। (साभार)
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