गुलशन राय खत्री, नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए भले ही कांग्रेस या अन्य विरोधी पार्टियां अब कोई बड़ी चुनौती न रही हों, लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी के सामने अब कोई चुनौती बची ही नहीं है। दरअसल, अब मोदी को जिस चुनौती का सामना करना पड़ेगा वह होगी- इस भारी बहुमत को बनाए रखना। वजह यह है कि भले ही मोदी का रुतबा बेहद बढ़ गया हो, लेकिन पार्टी के भीतर अब भी एक वर्ग ऐसा है, जो मोदी की सोच से सहमत नहीं है। आने वाले दिनों में मोदी और बीजेपी के लिए कई चुनौतियां सामने आने वाली हैं।
यह सही है कि मोदी पीएम बनेंगे, लेकिन मोदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत अपने सीनियर लीडरों के लिए पद खोजने की होगी। इनमें लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी हैं। हालांकि सुषमा स्वराज भी आडवाणी खेमे की हैं, लेकिन अगर उन्हें मंत्री पद दिया जाता है तो उसमें ज्यादा अड़चन नहीं आएगी। लेकिन आडवाणी को मंत्री पद देना संभव नहीं है, क्योंकि कायदे से मंत्री, पीएम के मातहत ही होता है। ऐसे में आडवाणी को स्पीकर के पद के लिए मनाना एक बड़ी चुनौती है। बीजेपी के एक सीनियर लीडर के मुताबिक, अगर आडवाणी स्पीकर पद न लेकर सिर्फ सांसद की भूमिका में ही रहने की जिद करते हैं, तो इससे मोदी के लिए भविष्य में कई मुश्किलें खड़ी होंगी। यही स्थिति डॉ. जोशी की भी है। उन्हें भी संतुष्ट करना मोदी के लिए आसान नहीं होगा।
यह सही है कि बीजेपी को अभूतपूर्व सफलता मिली है लेकिन इतनी ज्यादा सीटें मिलने के बाद अब मोदी के लिए उनमें से कैबिनेट लायक सांसदों को चुनना भी कठिन चुनौती होगी। चूंकि मंत्री पद तो सीमित ही हैं, ऐसे में इतनी बड़ी तादाद में सांसदों को संतुष्ट करना एक बड़ा चैलेंज होगा। इसमें सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर महत्वाकांक्षी सांसदों को मंत्री पद नहीं मिला तो फिलहाल वे कुछ माह तक चुप रहें, लेकिन आगे चलकर ऐसे सांसद मुंह खोल सकते हैं। इस चुनाव के बाद बीजेपी के भीतर भी जबरदस्त बदलाव होंगे। इसकी वजह यह है कि अब तक पार्टी के कई पदाधिकारियों को मंत्री बनाया जाएगा। खुद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के भी कैबिनेट में जाने की चर्चा है। ऐसे में हो सकता है कि आने वाले दिनों में पार्टी संगठन में ही परिवर्तन नजर आए। (साभार एनबीटी)
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