आदिवासी लड़कों व लड़कियों के लिए हॉस्टल बनाने की योजना केन्द्र के ज़रिए शुरू की गई. इस योजना के तहत गुजरात सरकार को साल 2010-11 में 1296.43 लाख रूपये मिले, लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार एक भी हॉस्टल गुजरात में नहीं बनवा सकी. साल 2011-12 का भी यही हाल रहा. साल 2012-13 में भी 187.06 लाख रूपये मिले, लेकिन किसी हॉस्टल का निर्माण नहीं हो सका.
मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के मुताबिक वो गुजरात में एक बार साईकिल यात्रा पर गए थे. वहां उन्होंने देखा कि गुजरात में मोदी की सरकार ने Forest Rights Act में एक भी आदिवासी को ज़मीन नहीं दी है. जिनके पास पहले ज़मीन थी. जो आदिवासी पहले से खेती कर रहे थे, उनको वहां से भगाकर जबरदस्ती पौधा-रोपन करके चारों तरफ फेंसिंग कर दी गई है और वहां गार्ड बैठा दिया गया, ताकि कोई आदिवासी घुस ना पाए. कहानी यहीं खत्म नहीं होती. गुजरात में अभी भी इतना छूआछूत है कि आदिवासी व दलितों के बच्चों को पोलियो ड्रॉप तक नहीं पिलाई जा रही है. (ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि इस्ट-वेस्ट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बता रही है, जिस पर इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी.) आगे स्थिति का अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं.
सरोज मिश्र के फेसबुक वाल से
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