नई दिल्ली। भाजपा के अंदर छिड़े कथित घमासान और वरिष्ठ नेताओं की सार्वजनिक नाराजगी के कारण हो रही पार्टी की फजीहत के बीच खुद सर संघचालक ने स्पष्ट कर दिया है कि 'परिवर्तन' रोका नहीं जा सकता है। स्वार्थ के लिए उठ रही आवाजों का परोक्ष हवाला देते हुए उन्होंने कहा, 'स्फटिक चाहिए, तो आसपास के नमक को उसके साथ ही इकट्ठा होना पड़ता है। साध्य तभी सफल होता है।' देश की बात करते करते भागवत ने कहा, 'परिवर्तन प्रकृति का अपरिवर्तनीय नियम है। इसे स्वीकार करना ही होगा।' जाहिरा तौर पर उनका संकेत हाल ही में फिर से नाराज होकर माने आडवाणी के साथ साथ बागी हुए जसवंत सिंह के लिए भी था। जसवंत ने न सिर्फ निर्दलीय नामंकन भर दिया है बल्कि नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बयानबाजी तेज हो गई है। ध्यान रहे कि सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने पहले ही खुल कर नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा था कि संघ को उनके स्वयंसेवक होने पर गर्व है। एक तरह से उन्होंने यह संकेत दिया था कि मोदी भाजपा का ही नहीं संघ की विचारधारा का भी चेहरा हैं।
भागवत ने अलग अलग प्रसंग के माध्यम से फिर से कुछ ऐसा ही संकेत दिया। उन्होंने कहा, स्फटिक बनाना होता है तो नमक के घोल के बीच ठोस स्फटिक डालना होता है ताकि उसके इर्द गिर्द सारा नमक इकट्ठा हो सके। वैसे भागवत ने भाजपा नेतृत्व को भी सलाह दी कि सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करें। उन्होंने कहा- छोटे-छोटे स्वार्थो को लेकर टकराव स्वाभाविक है। लेकिन विविधता के बावजूद सबको एकजुट रखना भी जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि संवाद कायम रहे। उसके बिना समाज आगे नहीं बढ़ता है। पार्टी नेताओं को बयानबाजी से बचने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि वे सत्य बोलें, लेकिन प्रिय बोलें। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का परोक्ष समर्थन करते हुए भागवत ने कहा कि देश को ऐसे नेता की जरूरत है, विचारों की भूमि पर जिनके पैर पक्के जमे हो और जो स्वयं की चिंता नहीं करते हों। (साभार)
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