बिना बर्फ की सर्दियां, जर्मनी में ये कोई नई बात नहीं है। लेकिन अब बर्फ की खेती से गर्मियों में भी बर्फ फैली रहेगी। बड़े बड़े डिपो गर्मियों में बर्फ बचा लेंगे। 10 मीटर ऊंचे, 25 मीटर चौड़े, बड़े बड़े कृत्रिम टीले, कहीं से भी दिख जाते हैं। इन्हें बहुत ध्यान से खास तह में बंद किया गया है ताकि इनके नीचे रखा हुआ सामान सुरक्षित रहे। दिखने में अजीब से ये टीले विंटर गेम्स खेलने वालों के लिए वरदान हैं। क्योंकि यहां जमा किया गया है, करीब 10,000 घन मीटर बर्फ, वो भी अगले साल की सर्दियों के लिए। इस तरीके को स्नो फार्मिंग कहा जाता है, जिसमें बहुत सारा बर्फ गर्मियों में बचा कर रखा जाता है। पिछले कुछ साल में जर्मनी में बर्फ कम हुई है, औसत से ऊंचे तापमान के कारण सर्दियों का भी तुलनात्मक रूप से गर्म होने लगा है। इस फार्मिंग का फार्मूला आसान है, बहुत सारा बर्फ जमा करो, अच्छे से पैक करो और फिर अगली सर्दियों में विंटर खेलों के लिए बिछा दो।
पूरी गर्मियों में बर्फ को पिघलने से बचाए रखना, वो भी मैदान में, बड़ा अजीब लगता है। लेकिन ये काम करता है और इसके लिए किसी कोल्ड स्टोरेज की भी जरूरत नहीं है। इसके लिए सबसे जरूरी है, बहुत सारी कृत्रिम बर्फ, जो जनवरी या फरवरी में बनाई जाती है। फिर इसे स्टिरोफोम प्लेट आइसोलेशन से ढंका जाता है। इसके बाद हवा और रोशनी रोकने वाली प्लास्टिक की एक चादर इस पर डाली जाती है। बस इतनी पैकिंग से गर्मियों के दिनों में बर्फ सुरक्षित हो जाती है। फिनलैंड में कई साल से शुरुआती चौमासे में बर्फ जमा की जाती है, जिसे नवंबर में स्कीइंग के लिए फैला दिया जाता है, उस समय तो सीजन की पहली बर्फ भी नहीं गिरी होती। स्नो मैनेजमेंट का यह प्रयोग स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया के कुछ इलाकों में भी किया जा रहा है। जर्मनी में बायर्न का रुहपोल्डिंग और ब्लैक फॉरेस्ट इलाके में टिटिजे नॉयश्टाट अपने बर्फ डिपो के लिए मशहूर हैं। इन दोनों जगहों पर अंतरराष्ट्रीय शीतकालीन खेल प्रतियोगिताएं होती हैं। दावोस में स्नो एंड अवालांच शोध संस्थान के शोधकर्ताओं ने पता लगाता है कि भूसा बर्फ को सबसे अच्छे से बचाए रखता है, इसका नुकसान ये है कि बाद में इसे बर्फ से आसानी से अलग नहीं किया जा सकता. इसलिए टिटिजे और रुहपोल्डिंग में स्नो मैनेजरों ने बुरादे के विरोध में फैसला लिया। मैनेजर योआखिम हैफकर दलील देते हैं कि स्टिरोफोम की प्लेटें इस्तेमाल करने के लिए बहुत ही बढ़िया हैं और सस्ती भी हैं क्योंकि इनका कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्नोफार्मिंग का मुख्य आयडिया है, सर्दियों में तापमान गिरने का इंतजार करने की बजाए, पिछले साल का ही बर्फ बचा लेना। हैफकर कहते हैं कि अच्छा बर्फ मायनस पांच के तापमान से नीचे ही बन सकता है। जितनी ठंड होगी स्नोगन उतनी अच्छे से काम करेगी। फिर पानी भी कम लगेगा और बिजली भी। स्नोफार्मिंग में स्नो मशीन जनवरी या फरवरी में शुरू की जाती है, जब बाहर का तापमान गिर जाता है। तब तैयार होता है, अगले सीजन के लिए कृत्रिम बर्फ। स्नोफार्मिंग जर्मन खिलाड़ियों के लिए भी किफायती है। पहले विंटर गेम्स के जर्मन खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए स्कैंडेनेवियाई देशों में जाना पड़ता था, क्योंकि वहीं बर्फ होती थी। अब बायर्न में ही बर्फ बन जाती है, तो ट्रेनिंग भी यहीं हो जाती है। बर्फ का सबसे बड़ा दुश्मन गर्मी या सूरज नहीं बल्कि बरसात है। हवा और बारिश बड़ा खतरा पैदा करते हैं. हवा के झोंके चादर उड़ा ले जा सकते हैं। बारिश होने पर गोले बनने लगते हैं और बारिश बर्फ खा जाती है। बर्फ की खेती करने वालों को हर दिन देखना पड़ता है कि बर्फ एकदम अच्छे से ढंकी हुई है या नहीं। भले ही तापमान बढ़ जाए, अगर सूरज चमकता रहे तो पिघला पानी ऊपर ही भाप बन जाता है। इससे कूलिंग इफेक्ट पैदा होता है। (साभार dw.de। रिपोर्टः वेरा कैर्न/आभा मोंढे, संपादनः महेश झा)
- Blogger Comments
- Facebook Comments
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।