मुम्बई, (कोमल नाहटा)। नाडियाडवाला ग्रैंडसन और विंडो सीट फ़िल्म्स की हाईवे कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसका अपहरण हो जाता है और वो अपने ही अपहरणकर्ता से प्यार करने लगती है। वीरा (आलिया भट्ट) की विनय (अर्जुन मल्होत्रा) से सगाई हो जाती है। लेकिन शादी से ठीक एक दिन पहले ही कुख्यात अपराधी महाबीर भाटी (रणदीप हुडा) उसको अग़वा कर लेता है। पहले तो वीरा बहुत डर जाती है लेकिन जल्द ही उसे एहसास हो जाता है कि महाबीर उसे शारीरिक तौर पर कोई नुक़सान नहीं पहुंचाएगा। उसका अपहरण सिर्फ़ पैसों के लिए किया है।
महाबीर के साथ रहने के दौरान वो धीरे-धीरे उसे पसंद करने लगती है। महाबीर भी वीरा की मासूमियत और चंचलता से प्रभावित हो जाता है। बल्कि वो महाबीर से बताती है कि अग़वा होने के बाद वो कितना आज़ाद महसूस कर रही है और वो सब कुछ कर पा रही है जो अपने अमीर मां-बाप के साथ रहते हुए वो नहीं कर पा रही थी। वीरा के साथ समय गुज़ारते हुए महाबीर का भी दिल बदल जाता है और वो वीरा को एक पुलिस स्टेशन के नज़दीक छोड़ देता है ताकि वो अपने परिवार वालों से मिल सके। लेकिन तब तक वीरा, उससे प्यार करने लगती है और उसे छोड़कर अपने मां-बाप के पास जाना नहीं चाहती। आगे क्या होता है? यही फ़िल्म की कहानी है।
इम्तियाज़ अली की कहानी मौलिक तो नहीं है। हम ये सब दूसरी कुछ फ़िल्मों में भी देख चुके हैं, लेकिन फ़िल्म का स्क्रीनप्ले (इम्तियाज़ अली) बिलकुल ताज़ा है। वीरा और महाबीर के बीच फ़िल्माए दृश्य ताज़गी का एहसास देते हैं और मनोरंजनक भी हैं। वीरा के किरदार में आलिया भट्ट की मासूमियत फ़िल्म का सबसे मज़बूत पहलू है। महाबीर तथा उसके साथियों की हरकतें व वीरा की सहज स्वाभाविक चंचलता फ़िल्म में जरूरी कंट्रास्ट लाने में कामयाब होते हैं। हालांकि कहानी में गंभीर मोड़ तब आता है जब वीरा अपने बचपन के एक सदमे के बारे में महाबीर को बताती है। लेकिन निर्देशक फ़िल्म में वापस हल्के फुल्का माहौल लाने में कामयाब होता है।
स्क्रीनप्ले में कुछ खामी हैं। जैसे वीरा के अपहरण के बाद निर्देशक ने काफी देर तक यह दिखाने की ज़हमत नहीं उठाई कि उसके मां-बाप क्या सोच रहे हैं। वो क्या कर रहे हैं। साथ ही महाबीर का वीरा से लगाव व उसका दिल पिघलना भी जल्दबाज़ी में दिखाया गया। पहली बार आज़ादी के मजे ले रही वीरा का अमीर मां-बाप के प्रति ग़ुस्सा सबको अच्छा नहीं लगेगा। फ़िल्म का हास्य कुछ दर्शक को पसंद आएगा। सिंगल स्क्रीन थिएटर्स के दर्शक फ़िल्म को उतना प्यार ना दें। इंटरवल से पहले फ़िल्म ज़्यादा मनोरंजक है। बाद में मनोरंजन की कमी है। ये हिस्सा खींचा गया व अवास्तविक सा लगता है। फ़िल्म की गति धीमी है। इम्तियाज़ के संवादों में दम है।
महाबीर भाटी के किरदार में रणदीप हुडा ने अभिनय का लोहा मनवाया है। उन्होंने ऐसे अपराधी का रोल निभाया है जिसका ह्रदय परिवर्तन हो जाता है। आलिया भट्ट का कमाल का अभिनय है। वो अपने किरदार में पूरी तरह से घुस गई हैं। बाकी कलाकारों ने भी उम्दा अभिनय किया है। इम्तियाज़ अली का निर्देशन अच्छा है। उनकी सबसे बड़ी कामयाबी ये रही कि उन्होंने अपने कलाकारों से बेहतरीन काम लिया। एआर रहमान का संगीत अच्छा है लेकिन उनसे इससे कहीं बेहतर काम की उम्मीद थी। 'आली-आली' गाना पहले ही सुपरहिट हो चुका है लेकिन बाकी गानों में वो माद्दा नहीं है जो लोगों की ज़ुबां पर चढ़ें। कुल-मिलाकर हाईवे एक अच्छी फ़िल्म है। (साभार बीबीसी)
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