मुंबई। कहा जाता है कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में ऐडमिशन मिलना अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में ऐडमिशन लेने से भी ज्यादा मुश्किल है। लेकिन अब आईआईटी को बेहद शर्मनाक हालात का सामना करना पड़ रहा है। बहुत सी सीटें खाली रह जाने की वजह से आईआईटी को अलॉटमेंट्स का दूसरा राउंड चलाना पड़ रहा है। आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ने का मौका पाने वाले 769 स्टूडेंट्स ने वह कर दिया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। उन्होंने आईआईटी में पढ़ने से मना कर दिया। यह बेहद रेयर सिचुएशन है, जब देश भर में जनरल कैटिगरी की सीटें तक ऐडमिशन के पहले राउंड के बाद खाली हैं। पहले रिजर्व कैटिगरी की सीटें ही खाली रहती थीं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब जनरल कैटिगरी की सीटें खाली रह गईं। यानी अब बहुत से स्टूडेंट्स के पास आईआईटी में सीट पाने का मौका है।
बताया जा रहा है कि आईआईटी में ऐडमिशन न लेने की दो मुख्य वजहे हैं। हाल ही में खुले नए आईआईटी पर स्टूडेंट्स को भरोसा नहीं हैं। वहां की फैकल्टी और सुविधाओं समेत कई बातों को लेकर उनके मन में शंका है, इसलिए उन्होंने दाखिला नहीं लिया। दूसरी वजह यह है कि उनका नंबर उन स्ट्रीम्स के लिए पड़ा, जो कम पॉप्युलर हैं। 10 जुलाई से शुरू हुए सेकंड राउंड उन लोगों के लिए उम्मीद लेकर आया है, जो इस टॉप इंजिनियरिंग स्कूल में पढ़ना चाहते हैं।
जेईई चेयरमैन एसची गुप्ता ने कहा कि इस बार सभी कैटिगरी के स्टूडेंट्स के लिए सैंकड़ों सीटें उपलब्ध हैं। वैसे तो हर आईआईटी में सीटें खाली हैं लेकिन आइएसएम धनबाद में सबसे ज्यादा सीटें खाली हैं। आईटी-बीएचयू में बहुत सी खाली सीटें होती थीं, लेकिन इस साल ज्यादा सीटें खाली नहीं है। सेकंड अलॉटमेंट शुरू करने से पहले उन छात्रों को बेटर स्ट्रीम चुनने का मौका दिया गया, जो ऐडमिशन ले चुके हैं। यानी 1, 100 रैंकिंग वाले स्टूडेंट ने अगर सीट नहीं ली, तो उसकी जगह कम रैंकिंग वाले को सीट दी गई। मगर ऐसा तभी है जब उसने उसने फॉर्म में उस स्ट्रीम को अपनी प्रेफरेंस में भरा होगा। 2009 में पहला ऐडमिशन का पहला राउंड बंद होने के बाद आईआईटी में 505 सीटें खाली थीं, जबकि 2011 में 300 सीटें खाली थीं। कुछ साल पहले आईटी को अलॉटमेंट का दूसरा राउंड नहीं चलाना पड़ता था। 1993 में आईआईटी मद्रास के पूर्व डायरेक्टर पीवी इंद्रसेन और आईआईटी दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर एनसी निगम ने आईआईटी में कोटा के इंपैक्ट की तरफ ध्यान खींचा था। 1993 में आई रिपोर्ट में कहा गया था, 'क्वॉलिफाइंग मार्क्स न लाने की वजह से एससी/एसटी स्टूडेंट्स की 50 फीसदी सीटें खाली रहती हैं। जो स्टूडेंट ऐडमिशन लेते भी हैं, उनमें से 25 पर्सेंट को खराब परफॉर्मेंस की वजह से संस्थान छोड़ना पड़ता है।' (साभार-एनबीटी, हेमाली छपिया)
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