देहरादून। उत्तराखड की आपदा की गूंज पूरे देश तथा विदेश में है तथा इसके लिए उत्तराखंड का आपदा प्रबन्धएन मंत्रालय व चार धाम यात्रा समिति एवं मुख्यमंत्री की आलोचना पूरे देश में हो रही है। मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी सलामत रहने की चिंता सताने लगी है, इसके लिए नेशनल मीडिया को मैनेज किये जाने का खेल शुरू किया गया। नेशनल मीडिया को काबू में किया जाना जरूरी था। दिल्ली से छन कर आ रही जनचर्चा के अनुसार इसके लिए भारी बजट व्यय किया गया। 50 करोड़ में नेशनल मीडिया मैनेज किये जाने की चर्चा है, जिसमें 2 करोड़ चैनलों को दिये गये, जिसमें 5 प्रमुख हैं। वहीं एक चैनल के तेजतर्रार सम्पादक को व्यीक्तिगत तौर पर अलग से दिया गया। स्थानीय स्तर पर अलग से मैनेज किया गया और इनके मौजमस्ती के लिए हेलीकाप्टर का इंतजाम से हुआ।
इसके बाद चैनलों का रूख ही बदल गया। भयावहता को कम किये जाने लगा तथा चैनलों ने अपने रिपोर्टरों को गांवों की सड़कों की ओर भेज दिया, जहां नुकसान कम हुआ है। उस ओर रूख मोड़ दिया, जहां आनन फानन में मदद पहुंचायी गयी, यानि नेशनल मीडिया राहत पैकेज पाकर डिफेंस में आ गया। इसका एक उदाहरण तब सामने आया जब कांग्रेसी विचारधारा के माने जाने वाले एक हिंदी न्यूंज चैनल डिबेट में राहुल गांधी की उत्ताराखंड यात्रा पर एक बड़े पत्रकार उनके डिफेंस में नजर आये। इस चैनल के प्रमुख एडिटर ने अपने तेज तर्रार स्वाभाव से अलग पहचान बनायी है। इसी से भयभीत विजय बहुगुणा के मीडिया मैनेजमेंन्ट ने इनको अलग से राहत दिये जाने की चर्चा दिल्ली में है। दिल्ली से देहरादून पहुंची जनचर्चा के अनुसार कांग्रेस हाईकमान का गंभीर रूख देखते हुए सकते में आयी विजय बहुगुणा सरकार ने पूरा जोर नेशनल मीडिया को मैनेज करने पर लगा दिया। इसमें 50 करोड़ का बजट खर्च किये जाने की चर्चा है। इसके बाद नेशनल मीडिया का रूख ही डिफेंस वाला हो गया। सत्य छुपाओ, मिशन शुरू हो गया। लाशों की घाटी में हेलीकाप्टर से उड़ते चैनलों के प्रतिनिधि देवभूमि में आकर कुछ दूसरा ही खेल खेलने लगे। चैनलों में डिबेट शुरू करा दी गयी। भयावह वाले स्थानों को कैमरों की नजरों से ओझल रखा जाने लगा है। अनगिनत उतराखंड के निवासियों का भी अब तक न तो पता चला है और न ही कोई उनकी सुध ले रहा है। यह मुददा चैनल दबाने व छुपाने में लगे हैं क्योंकि वह मैनेज हो चुके हैं।
केदार वैली के 101 गांवों का अता पता नहीं है तो बदरीनाथ क्षेत्र के भी कई गांवों तक का पता नहीं है, परन्तु यह न्यूज टीवी चैनलों से गायब है। कर्णप्रयाग से नारायण बगड़, देवाल, थराली और गवालदम तक की कहानी एक जैसी है। हर कस्बे और गांवों में रहने वाले लोग प्राकृतिक आपदा की मार से पीड़ित हैं। अलकनंदा, पिंडर और मंदाकिनी नदियों के किनारे बसे गांवों में मकान मलबे के ढेर में बदल गए हैं। अब इन गांवों को फिर से बसाना एक बड़ी चुनौती है। श्रीनगर में अलकनंदा ने तबाही मचाई। मंदाकिनी नदी ने केदारघाटी में और अलकनंदा नदी ने बदरीनाथ से श्रीनगर से आगे तक भारी तबाही मचाई। परन्तु चैनल इस तरह की कोई खबर दिखाने से गुरेज कर रहे हैं। कुपित होकर कुदरत ने रौद्र रूप अपनाया था, वही कार्य अब नेशनल मीडिया करने लगा है। वहीं दूसरी ओर फेसबुक में विनय उनियाल का कमेन्टर आया है कि आज प्रात: आपदा पीडित लोगों के परिजनों का धैर्य भी जवाब दे गया। सुबह-सुबह एक पत्रकार की जमकर धुनाई कर डाली और एक वाहन आग के हवाले कर दिया। (कानाफूसी) देहरादून से चन्द्रकशेखर जोशी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट। (साभार-भड़ास. देखें लिंक-- http://bhadas4media.com/article-comment/12638-00087.html)
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