सुनहरी पन्नियों में लिपटे पैकेटों पर रोशनी की जगमगाहट और रुमानी हस्तियों की नाजुक अंगुलियों में इठलाती सफेद सिगरेट और ऊपर से छूटता धुआं। नीचे सबसे छोटे फॉन्ट में, "सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।" "सिगरेट पीने से किसी तरह का कोई फायदा नहीं होगा, सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही हो सकता है", दुनिया के गिने चुने तर्कहीन नियमों में इस नियम को भी शामिल किया जा सकता है। लेकिन विज्ञापनों में इसे एक अलौकिक शक्तिवर्धक, जवां मर्दों और फैशन के दीवानों के अवश्यंभावी अंग के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है। मानो कि सिगरेट न पीने वाला निरा जाहिल किसी और ग्रह से आया प्राणी हो।
विश्व तंबाकू रहित दिवस पर इस साल इसी विज्ञापन पर नकेल कसने की कोशिश की जा रही है। जब से 31 मई के दिन को तंबाकू रहित दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है, उस दिन से तंबाकू और सिगरेट के कारण से मरने वालों की संख्या सिर्फ बढ़ी है, घटी नहीं। जानकारों और हर विषय पर टिप्पणी करने वालों से अगर पूछें तो वे इसे "जागरूकता की कमी" कह कर इंटरव्यू चलवा लेते हैं, टीवी पर चेहरे दिखवा लेते हैं और बाद में सिगरेट के ही एक दो कश के बीच अपनी कलाकारी की चर्चा कर लिया करते हैं। सिर्फ ऐसे जानकार ही नहीं, दुनिया भर के व्यापक मुद्दों को आधे घंटे के शो में सुलझा देने वाली मीडिया भी इस मुद्दे पर बड़ी दिलचस्पी दिखाती है। यह उन्हें ग्लैमर दिखाने का अच्छा मौका देता है। "बीड़ी जलईले जिगर से पिया" और "हर फिक्र मैं धुएं में उड़ाता चला गया" के वीडियो तराश तराश कर चलाए जाते हैं. सिगरेट पर रोक का मुद्दा उलटी दिशा में कुछ इस तरह निकल पड़ता है, जहां बस सबसे अच्छे ब्रांड की चर्चा ही बाकी रह जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के गैरसंक्रामक रोग विभाग के प्रमुख डगलस बेचर का कहना है, "यह उद्योग ऐसा माल बेचता है, जिसके आधे उपभोक्ता मारे जाते हैं। तंबाकू विज्ञापन और प्रायोजन को बंद करना सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। इससे युवाओं को सिगरेट से दूर किया जा सकता है।" ज्यादातर सिगरेट पीने वाले 20 साल से कम उम्र में ही इसकी शुरुआत कर देते हैं। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे का दावा है कि भारत में यह उम्र 15 साल से भी कम है, जो कभी किसी फिल्मी सितारे और दूसरी बड़ी हस्तियों की अंगुलियों में फंसी सिगरेट के ग्लैमर में बंध कर धुएं का गुलाम हो जाता है। सेहत विशेषज्ञों के मुताबिक मशहूर हस्तियों को सिगरेट पीते देख कच्चे दिमाग वाले किशोर बहुत तेजी से इसकी चपेट में आते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, "हर दिन करीब 2,500 लोग भारत में तंबाकू की वजह से जान गंवा देते हैं." दुनिया के तीन चौथाई लोग सिगरेट छोड़ना चाहते हैं लेकिन उन्हें सही मौका और मार्गदर्शन नहीं मिलता। सिर्फ पांच फीसदी ही ऐसा कर पाते हैं।
दुनिया भर में हर साल 60 लाख लोग तंबाकू की वजह से जीवन गंवाते हैं और यह आंकड़ा 2030 तक 80 लाख पहुंच जाएगा। सिगरेट पीने वालों को कैंसर, अस्थमा और दिल की बीमारी बड़ी आसानी से लग सकती है। सिगरेट के डिब्बों में आजकल यह जरूर लिखा होता है कि सिगरेट पीने से फलां फलां बीमारी हो सकती है लेकिन ऊपर से चमकीले विज्ञापन का लबादा ओढ़ा दिया जाता है। डब्ल्यूटीओ के मुताबिक सिर्फ 15 देशों ने ऐसे खतरनाक विज्ञापन दिए हैं, जहां सिर्फ छह फीसदी आबादी रहती है। सरकारों की सख्ती और सेहत संगठनों के दबाव के बाद कई देशों में सिगरेट के विज्ञापनों पर रोक लगा दी गई है। लेकिन घाघ कंपनियों ने इन्हीं नामों से दूसरे प्रोडक्ट फैला दिए हैं, मिसाल के तौर पर पीने का पानी या रेडिमेड कपड़े। नतीजा यह कि ब्रांड नाम विज्ञापन की दुनिया में बना हुआ है। यह ब्रांड अलग उत्पादों के नाम पर फॉर्मूला वन के ट्रैक पर अपने बैनर लगा लेता है, तो मैराथन रेसों का आयोजन भी करा देता है। यह सब जानते हैं कि सिगरेट पीने वाले खेल के मैदान में दौड़ नहीं सकते। सिगरेट की बड़ी कंपनियां अरबों अरब रुपये विज्ञापनों में खर्च करती हैं और उन्हें गवारा नहीं होगा कि सिगरेट ग्लैमर की वस्तु के रूप में न बिके। सिगरेट के नुकसान पर न आंकड़ों की कमी है, न विशेषज्ञों की राय की। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर कोने का नीम हकीम कोई भी इस पर घंटों जानकारी दे सकता है। लेकिन ये सिगरेट छूटती है सिर्फ मजबूत इरादे से। पहली तलब को मार लेना तंबाकू के खिलाफ जंग की पहली जीत है। (साभार)
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