ऋषिकेश (राम महेश मिश्र)। चार धाम की यात्रा के दौरान आई त्रासदी को रोकने के लिए पर्यावरण के अनुकूल और पहाड़ों के हिसाब से नए अनुशासन स्थापित करने के साथ-साथ नए नियम गढ़ने होंगे। उक्त बातें नोवेल पुरस्कार विजेता व पर्यावरणविद् डॉ.आरके पचौरी ने बुधवार को परमार्थ निकेतन के राहत शिविर में पत्रकारों से बात करते हुए कही। उन्होंने कहा कि इस त्रासदी को प्राकृतिक आपदा नहीं कहेंगे। जलवायु परिवर्तन और लगातार बढ़ रही व्यावसायिक गतिविधियों के कारण ही ऐसी भीषण त्रासदी देखनी पड़ी है। उन्होंने कहा कि त्रासदी खत्म नहीं हुई हैं बल्कि खतरे अभी भी बढ़े हुए हैं। खतरे को ध्यान में रखकर तमाम तरह की तैयारियां करनी होगी।
स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि जी महाराज ने कहा कि इस बात की सबसे ज्यादा जरुरत है कि इस आपदा में फंसे लोगों को कैसे बचाया जाए और उनकी जानकारी उनके परिवारों तक कैसे पहुंचाई जाए। परमार्थ निकेतन की ओर से एक दिन के ही अंदर 60 से अधिक लोगों को उनके परिवार से मिलवाया गया है। उन्होंने प्रशासन और तमाम सामाजिक कार्यों में लगे लोगों से आह्वान किया कि वे सबसे पहले रास्ते व पहाड़ों पर फंसे लोगों को उनके घर-परिवार तक पहुंचाएं। इसके साथ ही तबाह हुए गांवों में राशन-दवाए और राहत कार्यों से जुड़ी तमाम वस्तुएं पीड़ितों तक पहुंचाई जाए। उन्होंने कहा कि गंगा के किनारों को बचाना होगा नहीं तो गंगा अपने किनारों से हमें दूर कर देगी। पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री नवजोत कौर सिद्धू ने कहा कि आपदा से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आपदा की इस घड़ी में हम सभी को ही आगे आना होगा। भविष्य में इस तरह की त्रासदी न देखनी पड़े इसके लिए समाज के हर वर्ग को सोचना होगा।
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