पटना। लालू के लिए महराजगंज उपचुनाव कई मायनों में अहम है। बिहार के महाराजगंज लोकसभा सीट के लिए होने जा रहे उपचुनाव का नतीजा आगामी लोकसभा चुनाव में इस राज्य की राजनीतिक दिशा का संकेत दे सकता है। इस अनुमान को उस प्रचार मुहिम से बल मिला है, जिसमें राज्य के दो शीर्ष प्रतिद्वंदी नेता नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की ज़ोर आजमाइश बिलकुल साफ़ दिखी है। ख़ासकर इस बाबत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अतिशय सक्रियता को प्रेक्षकों ने 'किसी भी क़ीमत पर जीत' जैसी कोशिश बताया है। राज्य की महाराजगंज लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव से सम्बंधित मतदान दो जून को होगा।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद उमाशंकर सिंह के निधन की वजह से यह सीट ख़ाली हुई थी। उपचुनाव में नीतीश ने अपने कैबिनेट मंत्री पीके शाही को मैदान में उतारा है। राजद के प्रभुनाथ सिंह, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रशांत कुमार शाही और कांग्रेस के जीतेन्द्र स्वामी इसके प्रमुख उम्मीदवार हैं। पीके शाही बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री हैं और राज्य के महाधिवक्ता रह चुके है। दबंग छवि वाले प्रभुनाथ सिंह सांसद और विधायक रहे हैं। जितेन्द्र स्वामी उमाशंकर सिंह के पुत्र हैं। अगर जातीय आधार देखा जाए तो राजद और कांग्रेस के प्रत्याशी राजपूत समाज से जुड़े हैं और जदयू उम्मीदवार का ताल्लुक़ भूमिहार समाज से है। हालांकि ये तीनों 'तगड़े' उम्मीदवार समझे जाते हैं लेकिन सीधा या मुख्य मुक़ाबला राजद के प्रभुनाथ सिंह और जदयू के पीके शाही के बीच ही माना जा रहा है।
राजद की जीत जहां लालू प्रसाद की पिछली चुनावी निराशाओं में आशा की एक झलक दिखा सकती है, वहीं जदयू की हार से नीतीश कुमार की पिछली चुनावी बुलंदियों में उतार का सन्देश जा सकता है। लम्बे समय से बिहार में लगभग शिथिल बनी हुई कांग्रेस ने इस उपचुनाव में थोड़ी सक्रियता दिखाकर संघर्ष को तिकोना बनाने का प्रयास किया है। भाजपा ने जदयू से गठबंधन के तहत अपना उम्मीदवार नहीं दिया है यानी जदयू प्रत्याशी का ही समर्थन किया है। लेकिन चूंकि नरेन्द्र मोदी के सवाल पर इन दोनों दलों के बीच खटास है, इसलिए भाजपा में इस औपचारिक समर्थन को लेकर कोई ख़ास उत्साह नहीं है। उधर, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने अपने दलीय उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह की जीत सुनिश्चित कराने में पूरी ताक़त झोंक दी है।
राजद को महाराजगंज के तमाम यादव मतदाताओं और अधिकांश मुस्लिम मतदाताओं के साथ-साथ ज़्यादातर राजपूत मतदाताओं के समर्थन का भरोसा है। महराजगंज उपचुनाव दोनों नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। दूसरी तरफ जदयू को लगता है कि अति पिछड़ा और महादलित के अलावा भूमिहार मतदाताओं के बूते राजद को वह कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। लेकिन ये तमाम जातीय समीकरण गड्ड-मड्ड भी हो सकते हैं और अतीत में कभी-कभी होते रहे हैं। इसलिए ऊपर से ये दोनों दल जो भी दावे कर रहे हों लेकिन अन्दर से उन्हें चिंता भी सता रही है। चिंता का दूसरा बड़ा कारण ये भी है कि इस उपचुनाव के परिणाम को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक संकेत की तरह लिया जा सकता है। इसलिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद दोनों चाहते होंगे कि यह संकेत उनके अनुकूल हो। ज़ाहिर है कि इसी कारण महाराजगंज संसदीय उपचुनाव का बिहार में राजनीतिक महत्व बढ़ गया है। (मणिकांत ठाकुर, बीबीसी)
- Blogger Comments
- Facebook Comments
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।