बागपत (महबूब अली)।
दृश्य एक-बागपत कोतवाली
बागपत कोतवाली में तीन दरोगा कुर्सी पर जमे हुए हैं। हवालात में कई लोगों को हिरासत में बैठाया गया है। मुंशी लिखाई-पढ़ाई कर रहे हैं। मानवाधिकार के निर्देश दीवार पर छोटे अक्षरों में लिखे गए हैं। लिखे इस तरह से गए है कि उसे नजदीक जाकर देखने में भी लोगों को दिक्कत होती है। मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
दृश्य-दो एसपी और एएसपी कार्यालय
दूसरों को आदेश देने वाले और सरकार के आदेश का सख्ती से पालन कराने के जिम्मेदार एसपी और एएसपी के कार्यालयों में मानवाधिकार के निर्देश कहीं भी न तो दीवार पर लगे दिखाई देते हैं और ना ही होर्डिग्स में। पूछने पर बताया गया कि पीआरओ सेल में मानवाधिकार के निर्देश संबंधी बोर्ड लगा गया है। इसकी भी भाषा इतनी छोटी है कि गौर से देखने पर भी कुछ दिखाई नहीं देता।
दृश्य-तीन महिला थाना
यह संवाददाता जिस समय महिला थाने में पहुंचा तो दरोगा व दो पुलिसकर्मी कुर्सी पर बैठी हुई थीं। फरियादियों की भीड़ थाने पर जमा थी। यहां पर मानवाधिकार का होर्डिंग्स तो लगा तो मगर वह पूरी तरह से गंदा हो चुका था। देखने से लग रहा था कि पुलिसकर्मियों ने इसे काफी समय से साफ ही नहीं किया है। होर्डिंग्स भी थाना इंचार्ज की कुर्सी के पीछे लगा हुआ है। यदि कोई पढऩा भी चाहे तो भी न पढ़ सके। यह तीन उदाहरण तो बानगी भर है। बालैनी, बड़ौत, छपरौली थानों में भी यही हाल है। बागपत के विभिन्न थानों पर मानवाधिकार संबंधी लगे बोर्ड नियमों की धज्जियां उड़ाने के लिए काफी है। जिस पुलिस पर सरकार ने मानवाधिकार संरक्षण की जिम्मेदारी सौंप रखी हे, वहीं सरेआम उस आदेश को तार-तार कर रही है। मानवाधिकार का पहला सबक सिखाने के लिए थानों में 19 सूत्रीय होर्डिंग्स लगाने के सरकारी आदेश पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पा रहा है। एक दो थानों को छोड़कर होर्डिंग्स को सही तरह से नहीं टांगा गया है। थानों में लगने वाले मानवाधिकार संरक्षण के बोर्ड के प्रति पुलिस गंभीर नहीं है। उसके ऊपर लिखे 19 बिंदुओ का पालन करना तो दूर की बात है। यहां तक कि आम लोगों को मानवाधिकार संरक्षण के इन सुझावों के बारे में भी पता नहीं है। थानों व कोतवाली में इन बोर्डों को या तो किसी कमरे में डाल दिया गया या फिर एेसी जगह रखा गया है कि जहां लोगों की नजर नहीं जाती। यहीं हाल मानवाधिकार की लड़ाई लडने वालों के संगठनों का है। जिले में मानवाधिकार संरक्षण के लिए काम करने वाले एकाध संगठन हैं, मगर सक्रिय कोई भी नहीं दिखता। इस बारे में एसपी राजू बाबू सिंह का कहना हे कि मामला संज्ञान में नहीं है। होर्डिंग्सों के रखरखाव के संबंध में जल्द ही पुलिस को निर्देशित किया जायेगा।
दृश्य एक-बागपत कोतवाली
बागपत कोतवाली में तीन दरोगा कुर्सी पर जमे हुए हैं। हवालात में कई लोगों को हिरासत में बैठाया गया है। मुंशी लिखाई-पढ़ाई कर रहे हैं। मानवाधिकार के निर्देश दीवार पर छोटे अक्षरों में लिखे गए हैं। लिखे इस तरह से गए है कि उसे नजदीक जाकर देखने में भी लोगों को दिक्कत होती है। मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
दृश्य-दो एसपी और एएसपी कार्यालय
दूसरों को आदेश देने वाले और सरकार के आदेश का सख्ती से पालन कराने के जिम्मेदार एसपी और एएसपी के कार्यालयों में मानवाधिकार के निर्देश कहीं भी न तो दीवार पर लगे दिखाई देते हैं और ना ही होर्डिग्स में। पूछने पर बताया गया कि पीआरओ सेल में मानवाधिकार के निर्देश संबंधी बोर्ड लगा गया है। इसकी भी भाषा इतनी छोटी है कि गौर से देखने पर भी कुछ दिखाई नहीं देता।
दृश्य-तीन महिला थाना
यह संवाददाता जिस समय महिला थाने में पहुंचा तो दरोगा व दो पुलिसकर्मी कुर्सी पर बैठी हुई थीं। फरियादियों की भीड़ थाने पर जमा थी। यहां पर मानवाधिकार का होर्डिंग्स तो लगा तो मगर वह पूरी तरह से गंदा हो चुका था। देखने से लग रहा था कि पुलिसकर्मियों ने इसे काफी समय से साफ ही नहीं किया है। होर्डिंग्स भी थाना इंचार्ज की कुर्सी के पीछे लगा हुआ है। यदि कोई पढऩा भी चाहे तो भी न पढ़ सके। यह तीन उदाहरण तो बानगी भर है। बालैनी, बड़ौत, छपरौली थानों में भी यही हाल है। बागपत के विभिन्न थानों पर मानवाधिकार संबंधी लगे बोर्ड नियमों की धज्जियां उड़ाने के लिए काफी है। जिस पुलिस पर सरकार ने मानवाधिकार संरक्षण की जिम्मेदारी सौंप रखी हे, वहीं सरेआम उस आदेश को तार-तार कर रही है। मानवाधिकार का पहला सबक सिखाने के लिए थानों में 19 सूत्रीय होर्डिंग्स लगाने के सरकारी आदेश पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पा रहा है। एक दो थानों को छोड़कर होर्डिंग्स को सही तरह से नहीं टांगा गया है। थानों में लगने वाले मानवाधिकार संरक्षण के बोर्ड के प्रति पुलिस गंभीर नहीं है। उसके ऊपर लिखे 19 बिंदुओ का पालन करना तो दूर की बात है। यहां तक कि आम लोगों को मानवाधिकार संरक्षण के इन सुझावों के बारे में भी पता नहीं है। थानों व कोतवाली में इन बोर्डों को या तो किसी कमरे में डाल दिया गया या फिर एेसी जगह रखा गया है कि जहां लोगों की नजर नहीं जाती। यहीं हाल मानवाधिकार की लड़ाई लडने वालों के संगठनों का है। जिले में मानवाधिकार संरक्षण के लिए काम करने वाले एकाध संगठन हैं, मगर सक्रिय कोई भी नहीं दिखता। इस बारे में एसपी राजू बाबू सिंह का कहना हे कि मामला संज्ञान में नहीं है। होर्डिंग्सों के रखरखाव के संबंध में जल्द ही पुलिस को निर्देशित किया जायेगा।
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