ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में रविवार शाम आरम्भ हुए भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दूसरे दिन श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए सन्त श्री रमेश भाई ओझा ने कहा कि गंगाजी द्रवीभूत ब्रह्म हैं। गंगा अन्य तीर्थों की तरह मात्र तीर्थ नहीं हैं, बल्कि उनमें ब्रह्म के सभी गुण विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि गंगा मोक्षदायिनी हैं। यदि किसी पक्षी की छाया भी गंगाजल पर पड़ जाती है तो वह तर जाता है। भागवताचार्य श्री ओझा ने कथा की व्याख्या करते हुए कहा कि कथा में ‘क’ का अर्थ सुख, रस और ब्रह्म होता है और ‘था’ का मतलब इनमें स्थित होने से है। उन्होंने कहा कि कथा व्यक्ति को सुख, रस एवं ब्रह्म में स्थित कर देती है। वर्तमान समय में आत्मोत्थान, संस्कृतिनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा की बजाए इस नश्वर जगत में बढ़ती आसक्ति पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए श्री रमेश भाई ओझा ने कहा कि आज मनुष्य में विवेक को अधिकाधिक बढ़ाने की बड़ी आवश्यकता है। लोग विवेकी बनें, प्रेमी बनें, बैरागी बनें, इसकी प्रेरणाएँँ विभिन्न कथा प्रसंगों के उद्धरणों द्वारा देते हुए उन्होंने कहा कि नश्वर जगत में आसक्ति बढ़ने का प्रमुख कारण अज्ञान है। इस अज्ञानांधकार को केवल भागवत कथा से मिटाया जा सकता है। श्री ओझा ने भक्ति के माहात्म्य पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि भक्ति की भी कोई शक्ति है तो वह है भगवतकथा। समय-समय पर कथा रूपी टाॅनिक मानव जीवन के लिए बहुत जरूरी है। नियमित सत्संग भक्ति रूपी सम्पत्ति की तिजोरी को सदैव भरा रखता है। उन्होंने साधनों में निष्ठा को जरूरी कहा, वहीं साध्य को भूल जाने को जीवन की सबसे बड़ा नासमझी बताया। श्री ओझा ने कथा के प्रभाव के स्थिरीकरण व पुष्टिकरण के लिए अन्त में हरिनाम संकीर्तन को जरूरी कहा। आज की कथा का समापन श्रीमद्भागवत पुराण की आरती के साथ हुआ।
कथा आरम्भ करने के पहले सन्त श्री रमेश भाई ओझा परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती ‘मुनि जी महाराज’ के साथ गंगातट पर गए और गंगाजी में खड़े होकर माँ गंगा की पूजा-अभ्यर्थना की। जब भाईश्री कथा मंच पर पहुँचे, तब श्री मुनि जी महाराज ने उनका अभिनन्दन मंगल तिलक लगाकर किया। वाराणसी से आए जालान बन्धुओं ने श्री ओझा का संयुक्त रूप से सम्मान किया। सायंकाल उन्होंने श्री सन्दीपनि विद्या निकेतन, पोरबन्दर से आए दर्जन भर से अधिक आचार्यों के साथ परमार्थ गंगा तट पर गंगा आरती में भाग लिया। इस अवसर पर इलाहाबाद से आए वरिष्ठ कवि श्री बुद्धिसेन शर्मा द्वारा काव्य पाठ भी किया गया।
ऋषि कुमार पवन शर्मा को दी गई भागवत किंकर की उपाधि
परमार्थ निकेतन परिसर स्थित श्री दैवी सम्पद् अध्यात्म संस्कृत महाविद्यालय के ऋषि कुमार श्री पवन शर्मा को श्रेष्ठ युवा भागवताचार्य की उपाधि से सन्त श्री रमेश भाई ओझा द्वारा सम्मानित किया गया। श्री शर्मा शास्त्री-द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी हैं। उन्हें हाल में हरिद्वार मंि युवा भागवताचार्यों की संगोष्ठी में सर्वश्रेष्ठ भागवताचार्य के रूप में चुना गया है। संगोष्ठी में 70 युवा भागवताचार्यों ने हिस्सा लिया था, जिन्होंने मंच से भागवत कथा सुनाई। श्री शर्मा को भागवत किंकर की उपाधि से नवाजा गया। श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती सहित सभी सन्तों ने पवन शर्मा को इस सफलता पर बधाई दी और मंगल आशीष दिए।
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