अशोक चौधरी की रिपोर्ट
नैहाटी (कोलकाता)। कोलकता से 40 किमी दूर नैहाटी कस्बे की गौरीपुर जूट मिल के इलाके में गौरीपुर मजदूर बचाओ मंच के बुलावे पर प्रतिरोध का सिनेमा के नए निर्मित हुए कोलकाता चैप्टर ने एक शाम की फिल्म स्क्रीनिंग से अपनी शुरुआत की। यह मौका था स्वतंत्र फिल्मकार कस्तूरी और पूर्वा द्वारा बंद गौरीपुर जूट मिल के मजदूरों के समर्थन में बनाये जा रही फिल्म के ट्रेलर को दिखाने का। 1997 में बंद हुई गौरीपुर जूट मिल 150 साल पुरानी है। जब यह बंद हुई तब इसमें 5000 मजदूर काम करते थे। इसका अपना पावर प्लांट, पानी के शोधन का प्लांट, जेट्टी और पोस्ट आफिस था। सरकार और मालिकों की नीतियों की वजह से यह फायदे वाले मिल से बदलकर धीरे-धीरे घाटे वाली मिल में बदली और फिर हमेशा के लिए ही बंद कर दी गयी। अब यहां के मजदूर गौरीपुर मजदूर बचाओ आन्दोलन के नेतृत्व में अपने पेंशन, पीएफ़ और ग्रेचुटी को हासिल करने की लड़ाई में जुटे हैं। शाम 6 बजे अंधेरे होने पर गौरीपुर मजदूर बचाओ आन्दोलन के नेता सुब्रत सेनगुप्त ने प्रतिरोध का सिनेमा अभियान का पश्चिम बंगाल में स्वागत करते हुए मंच हमें सौंप दिया। द ग्रुप, जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने 1997 में बंद हुई गौरीपुर जूट मिल के मजदूर साथियों के बीच नए सिनेमा और जन संघर्षों के बीच बनते नए संबंधों के बारे में एक छोटी बातचीत की। फिर मजदूर कामरेड गायत्री दास के एक गाने से स्क्रीनिंग का सिलसिला शुरू हुआ। गायत्री दी के गाने के बाद बच्चों के लिए राजेश चक्रवर्ती के एनिमेशन गीत हिप हिप हुर्रे, के पी ससि की लघु फिल्म गांव छोड़ब नाही, आनंद पटवर्धन की फिल्म अकुपेशन मिल वर्कर, बीजू टोप्पो और मेघनाथ की फिल्म गाड़ी लोहरदगा मेल, कस्तूरी और पूर्वा द्वारा बनाई जा रही फिल्म गौरीपुर डायरी का ट्रेलर और नार्मन मेक्लेरन की लघु फिल्म नेबर्स दिखाई गयी। गौरीपुर मजदूर बचाओ आन्दोलन के साथियों द्वारा तैयार किये गए बांस की बल्लियों से बने एक तरफ से खुले हाल में कम से कम 300 लोग थे। उन्होंने न सिर्फ इस नए सिनेमा का मजा लिया बल्कि गौरीपुर पर बनने वाली फिल्म के ट्रेलर को देखकर बहुत सारे सुझाव और सार्थक आलोचनाओं से फिल्मकारों का हौसला भी बढ़ाया। जल्दी ही दुबारा आने के आग्रह के साथ हमारी पहली फिल्म स्क्रीनिंग समाप्त हुई।
नैहाटी (कोलकाता)। कोलकता से 40 किमी दूर नैहाटी कस्बे की गौरीपुर जूट मिल के इलाके में गौरीपुर मजदूर बचाओ मंच के बुलावे पर प्रतिरोध का सिनेमा के नए निर्मित हुए कोलकाता चैप्टर ने एक शाम की फिल्म स्क्रीनिंग से अपनी शुरुआत की। यह मौका था स्वतंत्र फिल्मकार कस्तूरी और पूर्वा द्वारा बंद गौरीपुर जूट मिल के मजदूरों के समर्थन में बनाये जा रही फिल्म के ट्रेलर को दिखाने का। 1997 में बंद हुई गौरीपुर जूट मिल 150 साल पुरानी है। जब यह बंद हुई तब इसमें 5000 मजदूर काम करते थे। इसका अपना पावर प्लांट, पानी के शोधन का प्लांट, जेट्टी और पोस्ट आफिस था। सरकार और मालिकों की नीतियों की वजह से यह फायदे वाले मिल से बदलकर धीरे-धीरे घाटे वाली मिल में बदली और फिर हमेशा के लिए ही बंद कर दी गयी। अब यहां के मजदूर गौरीपुर मजदूर बचाओ आन्दोलन के नेतृत्व में अपने पेंशन, पीएफ़ और ग्रेचुटी को हासिल करने की लड़ाई में जुटे हैं। शाम 6 बजे अंधेरे होने पर गौरीपुर मजदूर बचाओ आन्दोलन के नेता सुब्रत सेनगुप्त ने प्रतिरोध का सिनेमा अभियान का पश्चिम बंगाल में स्वागत करते हुए मंच हमें सौंप दिया। द ग्रुप, जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने 1997 में बंद हुई गौरीपुर जूट मिल के मजदूर साथियों के बीच नए सिनेमा और जन संघर्षों के बीच बनते नए संबंधों के बारे में एक छोटी बातचीत की। फिर मजदूर कामरेड गायत्री दास के एक गाने से स्क्रीनिंग का सिलसिला शुरू हुआ। गायत्री दी के गाने के बाद बच्चों के लिए राजेश चक्रवर्ती के एनिमेशन गीत हिप हिप हुर्रे, के पी ससि की लघु फिल्म गांव छोड़ब नाही, आनंद पटवर्धन की फिल्म अकुपेशन मिल वर्कर, बीजू टोप्पो और मेघनाथ की फिल्म गाड़ी लोहरदगा मेल, कस्तूरी और पूर्वा द्वारा बनाई जा रही फिल्म गौरीपुर डायरी का ट्रेलर और नार्मन मेक्लेरन की लघु फिल्म नेबर्स दिखाई गयी। गौरीपुर मजदूर बचाओ आन्दोलन के साथियों द्वारा तैयार किये गए बांस की बल्लियों से बने एक तरफ से खुले हाल में कम से कम 300 लोग थे। उन्होंने न सिर्फ इस नए सिनेमा का मजा लिया बल्कि गौरीपुर पर बनने वाली फिल्म के ट्रेलर को देखकर बहुत सारे सुझाव और सार्थक आलोचनाओं से फिल्मकारों का हौसला भी बढ़ाया। जल्दी ही दुबारा आने के आग्रह के साथ हमारी पहली फिल्म स्क्रीनिंग समाप्त हुई।
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