ऋषिकेश। ‘आग लेकर हृदय में कहां तक बहूं? यदि कहूं भी, तो, मैं दर्द किससे कहूं। मुझको सन्तान अपनी है लगती भली, तारने को उन्हें स्वर्ग से मैं चली। पहले आँगन हिमालय के मुझे लाया गया, बाद में हर कदम पर सताया गया। याद करके सपन मन ही मन में दहूं। यदि कहूं भी, तो, मैं दर्द किससे कहूं।‘
माता गंगा की यह करुण कराह उनमें उनके ही पुत्र-पुत्रियों द्वारा किये जा रहे प्रदूषण को देखकर एक कवि हृदय से निकली है। गंगा सप्तमी के पावन दिन पर जब हम गंगा मां को देखते हैं तो लगता है कि गंगा की यह करुण कराह, उनकी पुकार बनकर कानों में गूँज रही है। हरिद्वार के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल के विभिन्न चित्रों में गंगा की जो स्थिति है उसकी चर्चा करना बात को दोहराने जैसा होगा, लेकिन गंगा प्रदूषण पर कुछ सांकेतिक प्रकाश यहां डाला गया है और गंगाजी पर उत्पन्न समस्याओं के समाधान भी सुझाए गए हैं। गंगा सप्तमी पर परमार्थ गंगा तट पर गंगा आरती के समय सम्पन्न कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती ‘मुनि जी महाराज‘ ने देश-विदेश से आए गंगा प्रेमियों का आह्वान किया कि अब बिना देर किये गंगा प्रदूषण के सभी कारकों पर सीधा प्रहार किया जाना चाहिए और निर्मल गंगा के लिए अपनी-अपनी भूमिका निर्धारित कर लेनी चाहिए। श्री मुनि जी महाराज की अपील पर गंगा आरती में आये सभी व्यक्तियों, श्री दैवी सम्पद् अध्यात्म संस्कृत महाविद्यालय के ऋषिकुमारों एवं तीर्थयात्रियों ने अपनी अंजलि में गंगाजल लेकर गंगा माँ को निर्मल रखने तथा उसके तटों को स्वच्छ रखने के संकल्प लिये। परमार्थ प्रवक्ता ने बताया कि शनिवार 18 मई से प्रतिदिन प्रातःकाल सभी ऋषि कुमार एवं आश्रम सेवक गंगा के किनारों पर स्वच्छता अभियान चलायेंगे। इसके लिए प्रतिदिन प्रभातफेरी भी निकाली जायेगी।
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