लंदन। एक डॉक्टर का कहना है कि मौत के कई घंटे बाद भी इंसान को फिर से जीवित किया जा सकता है। तो अब सवाल ये है कि क्या हमें मौत के बारे में अपनी धारणाओं को भी बदलना चाहिए? ब्रिटेन में डेविज़ेस के पास ईस्टरटन की रहने वाली कैरल ब्रदर्स को पिछले महीने दिल का दौरा पड़ा था, उनके दिल ने धड़कना बंद कर दिया था। 63 साल की कैरल ब्रदर्स उस पल को याद नहीं कर पातीं जब उनकी मौत हुई थी। वो कहती हैं कि मुझे लगता है कि शुक्रवार दोपहर के भोजन का समय रहा होगा, क्योंकि हम सब खरीददारी करके वापस लौट ही रहे थे. मुझे ये याद नही कि कब मैं कार से निकली और घर के अंदर आ गई। लेकिन उनके पति डेविड को तीन महीने पहले घटी उस दिन की साफ यादें हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने घर का दरवाजा जैसे ही खोला तो देखा कि कैरोल ज़मीन पर पड़ी कर सांस के लिए हाँफ रही थीं और उनके चेहरे का रंग तेज़ी से उड़ता जा रहा था। मगर किस्मत से एक बुजुर्ग पड़ोसी को कार्डियो पल्मोनरी प्रक्रिया (सीपीआर) यानी रुके दिल की धकड़न को फिर से शुरु करने की क्रिया मालूम थी, उन्होंने जल्दी से उसके सीने को झटके और कृत्रिम तरीके से सांस देना शुरु किया। इसके बाद अस्पताल के पराचिकित्सकों ने इलाज शुरु किया। करीब 30 से 45 मिनट बाद कैरल का दिल फिर से धड़कने लगा।
न्यूयॉर्क में स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय में पुनर्जीवन अनुसंधान के निदेशक सैम परनिया कहते हंल कि वो 45 मिनट बेहद महत्वपूर्ण रहे। बहुत से लोगों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था, लेकिन हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो मौत के तीन, चार, पांच घंटे के बाद तक लोगों को वापस उनके जीवन में लाए हैं। अधिकांश लोगों का मानना है कि दिल का दौरा पड़ने और धड़कन बंद हो जाने से ही व्यक्ति की मौत हो जाती है लेकिन ये कोई अंतिम सीमा नही है। सैम परनिया कहते हैं कि लंबे अर्से से डॉक्टर मानते आए है कि अगर किसी व्यक्ति की धड़कन 20 मिनट से अधिक समय तक के लिए रुक जाती है, तो मस्तिष्क को ऐसा गंभीर नुकसान होता है, जिसे पूरा नही किया जा सकता लेकिन सावधानी और कायदे से किए गए सीपीआर से पुनर्जीवन संभव है। डॉक्टरों ने पुनर्जीवन के बाद मरीजों की देखभाल के नए तरीके भी खोज लिए है। सैम परनिया अपनी नई किताब में लिखते हैं कि जब मस्तिष्क में रक्त का संचार रुकने के चलते ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने लगती है, तो भी इससे मस्तिष्क का तुरंत नाश नही होता है और वो एक तरह से हाइबरनेशन में चला जाता है और नुकसान को खुद ही पूरा करने के तरीके खोजने लगता है। मस्तिष्क के जागने यानी पुनर्जीवन के लिए ये चरण खतरनाक होता है क्योंकि ऑक्सीजन संभवतः इस चरण में विषाक्त हो सकती है। इसकी तुलना एक भूकंप के बाद आई सुनामी से की जा सकती है। मरीज़ों के लिए सबसे अच्छा तरीका शरीर के तापमान को 37 डिग्री सेल्सियस से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच लाना होगा। परनिया कहते हैं कि ठंड़ा करने की चिकित्सा के पीछे कारण ये है कि ये मस्तिष्क कोशिका के क्षय होने की गति को धीमा कर देती है। इस मामले में कैरल का फिर से भाग्य ने साथ दिया। जब उनके दिल ने फिर से धड़कना शुरु कर दिया तो उन्हें एक हेलिकॉप्टर पर रखा गया और चिकित्सक ने उन्हें उस जमे हुए भोजन का इस्तेमाल करके उन्हें ठंडा करना शुरु कर दिया, जिसे उन्होंने सुपरमार्केट में खरीदा था। अंततः कैरल ब्रदर्स को बाथ रॉयल यूनाइटेड अस्पताल में सघन चिकित्सा सलाहकार डॉ.जैरी नोलन की देखरेख में रखा गया। डॉ.जैरी नोलन पुनर्जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा निर्देशों के सहलेखक है। इस समय तक कैरल कोमा में थी। अगले कुछ दिनों में मिले संकेत भी कोई अच्छे नही थे। ईईजी स्कैन उनके मस्तिष्क के मृत होने जैसे संकेत दे रहा था। उस समय ऐसा लग रहा था कि मरीज़ भूकंप से तो बच गया, लेकिन सुनामी से तबाह हो गया। कैरल की बेटी मैक्सिन को डॉक्टर नोलन सलाह दी कि उन्हें मृत्यु की अनुमति दी जानी चाहिए। लेकिन तीन दिन बाद जब मैक्सिन ने फिर से अस्पताल का दौरा किया तब उन्होंने देखा कि उनकी मां कैरल जाग गई है और वो चारों ओर देख रहीं थी। उन्होंने फुसफुसाते हुए तीन छोटे शब्द कहे मैं घर आ रही हूं। शीतलन चिकित्सा से अब सब कुछ बदल रहा है। डॉ.जैरी नोलन कहते हैं कि दुनिया भर के अनुसंधान समूह कैरल की तरह के मामलों को देखने के लिए तत्काल नए दिशा निर्देश तैयार करने के लिए काम कर रहे है। अब डॉक्टर नोलन ने इस तरह की बातें कहनी बंद कर दी है कि कैरल मरने के बाद दोबारा ज़िंदा हुई है, क्योंकि अस्पताल ने उनकी मौत की घोषणा नहीं की थी। डॉक्टर नोलन सैम परनिया से सहमत हैं जिसके मुताबिक मृत्यु की अवधारणा को फिर से परिभाषित किए जाने की ज़रुरत है। वो कहते हैं, हम सोचते हैं कि मौत एक अचानक घटने वाली घटना है, मस्तिष्क में ऑक्सीजन का प्रवाह रुक जाता है, लेकिन हम जानते हैं कि मौत एक ऐसी प्रकिया है, जिसमें कोशिका के स्तर पर वो उनका धीरे-धीरे क्षरण होता है। (साभार, बीबीसी)
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