पटना, एनएफए। वे समाज के उस पायदान के लोग हैं, जिनकी दिनचर्या ही चूल्हे चौके से शुरू होती है और वहीं खत्म भी। मकसद होता है छोटे-छोटे बच्चों का पेट भरना। लेकिन यह दायित्व निभाने वाले खुद भी भूखे हैं और साथ में उनका परिवार भी।
मंगलवार को राज्य विद्यालय रसोइया संघ के लोगों ने अपनी आठ-सूत्री मांगों के समर्थन में पटना के आर ब्लॉक चौराहे पर प्रदर्शन किया। नेतृत्व कौशलेन्द्र कुमार वर्मा कर रहे थे। राज्य के अलग-अलग जिलों, पंचायतों और ब्लॉक से आए इन रसोइयों का दर्द यह है कि वे ईमानदारी पूर्वक सुबह छह बजे से लेकर शाम के छह बजे तक भोजन बनाते हैं, बच्चों को परोसते हैं, लेकिन सरकार को उनकी कोई चिंता नहीं है। उनके जैसा ही काम आंगनबाड़ी सेविकाएं भी करती हैं, पर सरकार उन्हें पन्द्रह सौ रुपये मानदेय देती है। हमारी पूरे महीने की मेहनत की कीमत महज एक हजार रुपये है। उसमें से भी दो महीने का मानदेय हेड मास्टर साहब देते ही नहीं। अब हम सरकार से अपनी मांगों की गुहार नहीं लगाएं तो आखिर इस प्रदेश में हमारी सुनेगा कौन? (साभार)
मंगलवार को राज्य विद्यालय रसोइया संघ के लोगों ने अपनी आठ-सूत्री मांगों के समर्थन में पटना के आर ब्लॉक चौराहे पर प्रदर्शन किया। नेतृत्व कौशलेन्द्र कुमार वर्मा कर रहे थे। राज्य के अलग-अलग जिलों, पंचायतों और ब्लॉक से आए इन रसोइयों का दर्द यह है कि वे ईमानदारी पूर्वक सुबह छह बजे से लेकर शाम के छह बजे तक भोजन बनाते हैं, बच्चों को परोसते हैं, लेकिन सरकार को उनकी कोई चिंता नहीं है। उनके जैसा ही काम आंगनबाड़ी सेविकाएं भी करती हैं, पर सरकार उन्हें पन्द्रह सौ रुपये मानदेय देती है। हमारी पूरे महीने की मेहनत की कीमत महज एक हजार रुपये है। उसमें से भी दो महीने का मानदेय हेड मास्टर साहब देते ही नहीं। अब हम सरकार से अपनी मांगों की गुहार नहीं लगाएं तो आखिर इस प्रदेश में हमारी सुनेगा कौन? (साभार)
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