परवेज़ त्यागी, मेरठ। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का भाजपा प्रेम सियासी दांव है या सुसाइड? हालांकि इस पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन इतना जरूर है कि नेता जी के वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी व संघ संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तारीपफ के बाद सियासी भूचाल जरूर आ गया है। एक ओर शायद सपा प्रमुख ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हिन्दु मतों में सेंधमारी का प्रयास किया है या फिर कांग्रेस को विकल्प का अहसास कराया है। उधर, दारूल उलूम देवबंद के उलेमाओं ने नेता जी के बयान पर तीखी आलोचना की है।
संसद में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के किसानों का मुद्दा उठाए जाने के बाद से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ की तारीफ के साथ ही सपा, भाजपा को कुछ मुद्दों को छोड़कर एक ही विचारधरा की पार्टी बताया था। उसके बाद से मुलायम सिंह यादव ने धीरे-धीरे भाजपा के प्रति अपना नरम रवैया प्रदर्शित किया और राजनाथ के बाद वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की तारीफों के पुल ही नहीं बांधे बल्कि यहां तक कह दिया कि आडवाणी जैसे बड़े नेता कभी झूठ नहीं बोलते हैं, जो बात वह उत्तर प्रदेश को लेकर कह रहे हैं वह पूरी तरह सही है। नेता जी के इस बयान को लेकर सियासी भूचाल आ गया लेकिन सपा प्रमुख का भाजपा प्रेम यहीं नहीं रूका और उन्होंने आडवाणी के बाद संघ संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भी शान में कसीदे पढ़ डाले। नेता जी का यह बयान राजनैतिक तौर पर दो रूप में देखा जा रहा है एक ओर कुछ राजनैतिक पंडित इस बयान के पीछे भाजपा के प्रति प्रेम नहीं बल्कि हिन्दु मतदाताओं में सेंधमारी के प्रयास के रूप में देख रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को केन्द्र में विकल्प का अहसास कराया जाना भी मुलायम के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। यहां तक तो सब कुछ ठीक है लेकिन अब बात समाजवादी पार्टी से जुड़े मुस्लिम मतों को लेकर शुरू होती है। मुलायम के भाजपा प्रेम पर दारूल उलूम देवंबद के उलेमाओं ने आपत्ति जताते हुए उनके बयान की कड़ी आलोचना की है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अस्थाई सदस्य मुफ्ती अरशद फारूकी ने तो यहां तक कह दिया है कि विधनसभा चुनाव से पूर्व मुलायम सिंह यादव ने बोर्ड के सामने मुस्लिम हितों को लेकर अनेकों लिखित वायदे किए थे लेकिन अभी तक किसी भी वायदे को सरकार के एक साल पूरे होने के बाद भी पूरा नहीं किया जा सका है। मुफ्ती साहब का कहना है कि भाजपा व सपा पिफर से बाबरी मस्जिद पर सियासत करने की जुगत में है उनके इस मकसद को अब पूरा नहीं होने दिया जाएगा। मंदिर-मस्जिद के भय से आवाम अब वोट नहीं देगी बल्कि आवाम की विकास और तरक्की की बात प्राथमिकता पर रहेगी। दोनों ही पहलुओं पर मुलायम के सियासी बयान को लेकर गौर किया जाए तो कहीं न कहीं उलेमाओं के बयान के बाद मुलायम का बयान राजनैतिक दांव के साथ-साथ सुसाइड के तौर पर भी सामने आता दिखाई दे रहा है।
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