प्रियंका तिवारी, गोरखपुर। खेती में सबसे अधिक प्रयोग आजकल रासायनिक उर्वरकों का हो रहा है। इस कारण यह अधिक महंगा होने के साथ-साथ मिलावट के दायरे में भी आता जा रहा है। यदि कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाय तो किसान भाई होने वाले आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं।
यूरिया की पहचानः यूरिया के दाने सफेद चमकदार और लगभग समान आकार के गोल होने चाहिए। पानी में घोलने पर पूरी तरह से घुल जाते हैं और घोल को छूने पर शीतल अनुभूति होती है। यदि गर्म तवे पर रखा जाता है तो पूरी तरह पिघल जाता है और आंच तेज करने पर कोई अवशेष नही बचता।
डीएपी की पहचानः यह सख्त, दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग का होता है और नाखूनों से आसानी से नहीं टूटता है। इसके दानों को लेकर तम्बाकू की तरह उसमें चूना मिलाकर मलने पर तीखी गंध निकलती है, जिसे सूंघना असहनीय हो जाता है। यदि तवे पर धीमी आंच में इसे गर्म करते हैं तो इसके दाने फूल जाते हैं।
सुपर फास्फेट की पहचानः यह सख्त दानेदार, भूरा काला, बादामी रंगों से युक्त होता है। इसे नाखूनों से आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता है। यह पाउडर के रूप में भी उपलब्ध होता है। इस उर्वरक की मिलावट बहुधा डी.ए.पी. व एन.पी.के. मिक्चर उर्वरकों के साथ की जाने की सम्भावना रहती है। अतः इस दानेदार उर्वरक को यदि गर्म करते हैं तो इसके दाने फूलते नहीं हैं जबकि डीएपी व अन्य मिलावट के दाने फूल जाते हैं।
जिंक सल्फेट की पहचानः इस उर्वरक में मैंग्नीशियम सल्फेट की मिलावट प्रमुख रूप से होती है इसके कारण भौतिक रूप से समानता होने से असली नकली की पहचान कठिन होती है। डीएपी के घोल में यदि जिंक सल्फेट के घोल को मिलाते हैं तो थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है जबकि मैंग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता। जिंक सल्फेट के घोल में यदि पतला कास्टिक का घोल मिलाते हैं तो सफेद, मटमैला माँड जैसा अवक्षेप मिलता है जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूरी तरह घुल जाता है। यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैंग्नीशियम सल्फेट है तो अवक्षेप नहीं घुलेगा।
पोटाश ख़ाद की पहचानः यह सफेद कणाकार, पिसे नमक और लाल मिर्च जैसा मिश्रण होता है जिसे नम करने पर ये आपस में चिपकते नहीं हैं। यदि इसे पानी में घोलते हैं तो घोलने पर ख़ाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरने लगता है। (लेखिका प्रियंका तिवारी कृषि मामलों की जानकार हैं)
यूरिया की पहचानः यूरिया के दाने सफेद चमकदार और लगभग समान आकार के गोल होने चाहिए। पानी में घोलने पर पूरी तरह से घुल जाते हैं और घोल को छूने पर शीतल अनुभूति होती है। यदि गर्म तवे पर रखा जाता है तो पूरी तरह पिघल जाता है और आंच तेज करने पर कोई अवशेष नही बचता।
डीएपी की पहचानः यह सख्त, दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग का होता है और नाखूनों से आसानी से नहीं टूटता है। इसके दानों को लेकर तम्बाकू की तरह उसमें चूना मिलाकर मलने पर तीखी गंध निकलती है, जिसे सूंघना असहनीय हो जाता है। यदि तवे पर धीमी आंच में इसे गर्म करते हैं तो इसके दाने फूल जाते हैं।
सुपर फास्फेट की पहचानः यह सख्त दानेदार, भूरा काला, बादामी रंगों से युक्त होता है। इसे नाखूनों से आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता है। यह पाउडर के रूप में भी उपलब्ध होता है। इस उर्वरक की मिलावट बहुधा डी.ए.पी. व एन.पी.के. मिक्चर उर्वरकों के साथ की जाने की सम्भावना रहती है। अतः इस दानेदार उर्वरक को यदि गर्म करते हैं तो इसके दाने फूलते नहीं हैं जबकि डीएपी व अन्य मिलावट के दाने फूल जाते हैं।
जिंक सल्फेट की पहचानः इस उर्वरक में मैंग्नीशियम सल्फेट की मिलावट प्रमुख रूप से होती है इसके कारण भौतिक रूप से समानता होने से असली नकली की पहचान कठिन होती है। डीएपी के घोल में यदि जिंक सल्फेट के घोल को मिलाते हैं तो थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है जबकि मैंग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता। जिंक सल्फेट के घोल में यदि पतला कास्टिक का घोल मिलाते हैं तो सफेद, मटमैला माँड जैसा अवक्षेप मिलता है जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूरी तरह घुल जाता है। यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैंग्नीशियम सल्फेट है तो अवक्षेप नहीं घुलेगा।
पोटाश ख़ाद की पहचानः यह सफेद कणाकार, पिसे नमक और लाल मिर्च जैसा मिश्रण होता है जिसे नम करने पर ये आपस में चिपकते नहीं हैं। यदि इसे पानी में घोलते हैं तो घोलने पर ख़ाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरने लगता है। (लेखिका प्रियंका तिवारी कृषि मामलों की जानकार हैं)
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